Wednesday, June 3, 2015

lok seva

लोक सेवियों के लियें दिशा बोध

दीन दुखियों की सेवा करना, उनके कष्टो का निवारण करना मनुष्य का कर्तव्य है। सेवा करने लियें जिस एक मात्र शक्ति की आवश्यकता होती है वह है 'मानवीय संवेदना'। जिसके मन में दूसरों के प्रति करुणा दया ममता का भाव है, वह अपनी वर्तमान शक्ति, साधन, समय  पीड़ित मानवता की सेवा में लगा देता है। ऐसे धन्य सत्पुरुषों को हम महामानव के नाम से जानते है।
     अधिक साधन,शक्ति से अधिक सेवा करने का रास्ता ऐसे महापुरुष नहीं अपनाते , क्योकि ऐसा करते ही वे सेवा के मार्ग से भटक कर अधिक शक्ति,साधन इक्क्ठा करने के स्वार्थ भरे मार्ग पर आ जाते है। और फिर स्वार्थ का यह दानव उन्हें सूक्ष्म लोभ-मोह-अहंकार का ऐसा विष देता है कि अनजाने में ही वे सेवा पथ से भटक कर स्वार्थ पथ पर पहुंच जाते है और अपने जीवन की महान संभावनाओं को स्वयं नष्ट कर डालते हैं ।
     ईश्वर ईमानदारी देखता है। जहाँ उसे संवेदनशील ईमानदार हृदय दीखता है, वहाँ वह अपने आशीर्वादों की झड़ी लगा देता है। लौह पुरुष जब भूदान के साहसिक निस्वार्थ अभियान पर निकले तो अमीर-गरीब ने दान की बौछार कर दी । विवेकानंद जब भारत की निस्वार्थ सेवा के उद्देश्य से अमरीका गए तो ठाकुर ने दिव्य शक्तियों की झड़ी लगा दी । शिवजी जब मुगलों से लोहा लेने निकले तो गुरु रामदास जी ने आशीर्वाद शक्ति की बरसात कर दी।
     अतः लोकसेवा के पथिकों को चाहियें कि वह सतत आत्म निरिक्षण करते रहें, कुछ पाने की नहीं सिर्फ और सिर्फ देने की महत्वकांक्षा रखें । याद रखें की यदि हम दो हांथों से बांटेंगे तो ईश्वर हज़ार हाथों से हमें देगा ।

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