Tuesday, February 11, 2014


अच्छी किस्मत बनाने का आसान आध्यात्मिक फार्मूला

दोस्तों अच्छी किस्मत कौन नहीं चाहता! भविष्य की अच्छी किस्मत वर्त्तमान के अच्छे कर्मों से बनती है
 
 अच्छी किस्मत  =  तपःपुण्य   

तपः  ::  का अर्थ है अपने अंदर मौजूद समस्त छोटी-बड़ी कमियों को ढूंढ-ढूंढ कर समाप्त कर देना अपनी इच्छा शक्ति से समस्त दोषों को नष्ट कर देना
पुण्य ::  का  अर्थ है निस्वार्थ भाव से दूसरों कि मदद  करना और बदले में 'Thank You'  की भी अपेक्षा ना रखना मदद को गुप्त रखना उसका ढिंढोरा ना पीटना

तो फिर देर कैसी, आज से शुरू  हो जाओ और  अपना सुनहरा भविष्य अपने हाथों से लिखो

ईतर योनि सिद्ध करके सिद्धि/शक्ति प्राप्त करने कि आकांशा रखने वाले सभी बंधुगण:


 ब्राह्मांड नियमानुसार शक्ति प्राप्त करने का अधिकारी केवल वही होते हैं, जो उसे धारण करने कि पात्रता सिद्ध करके दिखा दें । ईश्वर ने स्वाभाविक रूप से सभी मनुष्यों को शक्ति प्रदान की है ; बुद्धि, चरित्र, समय, जवानी, धन, विचार इत्यादि ईश्वर कि दी हुई स्वाभाविक शक्तियाँ हैं हम सबके पास । पात्रता कि कसौटी परखते हुए ईश्वर चाहता है कि सर्वप्रथम हम इन शक्तियों का सदुपयोग कर के  दिखाएँ । पात्रता सिद्ध होते ही हम अन्य उच्च स्तरीय शक्तियों कि साधना करके उन्हें धारण करने योग्य हो सकते हैं ।
यदि हम महान सिद्धों के इतिहास पर नज़र डालें तो देखेंगे किस प्रकार उन्होंने अपने विचार, समय, ओज-तेज को संयमित करके स्वाभाविक शक्तियों का सदुपयोग किया । तदपश्चात वह साधना मार्ग पर आगे बढ़ते हुए दिव्य शक्तियों को सिद्ध करके उनका लोक कल्याण के लिए सदुपयोग करते थे । प्रश्न यह है कि हम अपने समय, प्रतिभा,  धन, बुद्धि, साधन, श्रम का कितना सदुपयोग करते हैं ?
    राष्ट्र सेवा, औरों कि रक्षा के लियें शक्ति से पहले भावना कि जरूरत होती है । जिन में भावना उच्चस्तरीय हो, वह शक्ति होने या न होने कि परवाह नहीं करते । जो है, जितना है उतना पूरा  शतप्रतिशत सेवा में लगा देते हैं। न भगत सिंह कि पास सिद्धि थी न सुभाष चन्द्र बोस के पास, सिर्फ अपनी उच्चस्तरीय भावना अनुसार उन्होंने अपना सबकुछ राष्ट्र सेवा में अर्पित कर दिया । और उच्चस्तरीय भावना के लियें कोई इतर योनि कि सिद्धि नहीं सिर्फ साफ दिल एवं दृढ़ निश्चय होना काफ़ी है ।  यह श्रेष्ठ भावना जब जाग्रत होती है तब सद्गुरुदेव विशेष उद्देश्य के लियें दिव्य शक्तियाँ भी प्रदान करते हैं । नरेंद्र ने जब राष्ट्र के उद्धार के लियें अपना दृढ़ संकल्प दिखाया तब ठाकुर ने उनकी उच्च संस्कार देखते हुए शक्तिपात कर स्वामी विवेकानंद बना दिया , और राष्ट्र सेवा का महान कार्य करवाया ।