Thursday, July 30, 2015

guru poornima

शिक्षक, आचार्य, गुरु, सदगुरु और गुरुपूर्णिमा 

शिक्षक यानि जो किसी विषय पर शिक्षा दे।
आचार्य जो अपने श्रेष्ठ आचरण से शिक्षा दे ।
पहले हमारे आचार्य ही शिक्षक होते थे, अब शिक्षा व्यवसायिक है ।
    
       गुरु जो आपको शिक्षित करने की पूरी जिम्मेदारी ले । चाहे प्यार या दंड से, आपका परिष्कार करते हुए आपको अपनी विद्या में निपुण कर दे। विषय जैसे जीवन विद्या, कला, व्याकरण, युद्ध कौशल इत्यादि ।
सदगुरु जो जन्म-जन्मांतर तक आपका मार्गदर्शन करते हैं, आपको जीवन विद्या सिखाते हैं, और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करा देते हैं ।

       भारत के विश्वगुरु होने का कारण थे यहाँ के विश्वस्तरीय गुरु-आचार्य, जो न केवल अपनी विद्या में सिद्ध थे, अपितु अपने श्रेष्ठ आचरण से शिक्षा देते हुए शिष्य के दोषो को दूर कर उसे मेधावी-प्रतिभावान बना देते थे ।

गुरुपूर्णिमा वह पावन दिन था जिस दिन भारत को सम्पूर्ण विश्व ने अपना गुरु स्वीकार कर लिया था । 

      आज यदि फिर से भारत को अपनी खोयी हुई गरिमा वापस पानी है, तो उसके लियें वही मार्ग स्वीकार करना होगा । भारतीयों को गुरु-आचार्य का व्यक्तित्व एवं चरित्र धारण करना होगा । और जब ऐसे होगा तब पुनः सम्पूर्ण विश्व में गुरुपूर्णिमा मनाई जाएगी और विश्व का गुरु भारत होगा ।

      परन्तु आज गुरु-आचार्य बनाना तो छोड़ो, कोई शिष्य तक नहीं है। शिष्य बनाना जो स्वीकार करता है वह अपने जीवन की बागडोर अपने गुरु के हाथ में सौंप देता है । फिर गुरु की शिक्षा (philosophy) अनुसार अपना जीवन श्रेष्ठता से जीता है । 
      
      कैसे जीना है, कैसे निर्णय लेना है, किस से प्यार करना है, किस से शादी करनी है, कौन दोस्त है कौन दुश्मन, जीवन की कठिनाइयों से कैसे पार पाना है; यह केवल गुरु ही हमें सही तरीके से समझा सकते हैं । और आज जब हमारा कोई गुरु है नहीं, तो हमें यह सब बताएगा कौन, फिर आपाधापी से जीते हुए हम सदा रोते-बिलखते-परेशान रहते हैं ।

      मित्रों जीवन किसी न किसी को अपना गुरु अवश्य बनाइये । यदि आपको अपने आसपास कोई योग्य ज्ञानवान ईमानदार व्यक्ति नहीं मिलता है तो श्रेष्ठ पुस्तकों जैसे गीता, बाइबल, कुरान, गुरुग्रंथसाहिब किसी भी श्रेष्ठ पुस्तक को अपना गुरु मान ले और उसके शिष्य बन जाएँ। नियमित रूप से उन पुस्तकों को पढ़ें और जीवन के प्रश्नों का समाधान उनमें ढूंढें। निश्चित रूप से आपको अपना मार्गदर्शन अवश्य मिलेगा और आपके जीवन में भी गुरु-शिष्य परंपरा का श्रीगणेश हो जायेगा। युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लोगो को प्रकाश देती 3200 पुस्तकों का सृजन किया जो सभी मनुष्यों को गुरुतर मार्गदर्शन प्रदान करती है । www.awgp.org


Friday, July 17, 2015

bhatki hui pratibha

क्या आप शिक्षित, नौकरीपेशा/व्यापारी है?
क्या आप आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है?
क्या आप घर-गृहस्थी संभाल रहीं कुशल गृहणी हैं?
क्या आप अपने जीवन में केवल आजीविका अर्जन, घर-गृहस्थी, मौज-मस्ती तक ही सिमित हैं?
सावधान !! कहीं आप भटकी हुई प्रतिभा तो नहीं।
 

पैसा कमाना, परिवार बनाना उसका पालन-पोषण करना,  मौज मस्ती से जीना यह जीवन के आवश्यक अंग हैं । बिना पैसे के आज के समय में अच्छा जीवन अत्यंत कठिन है। मनोरंजन भी हमारे लिए आवश्यक है।

परन्तु देखा जाए तो एक पशु भी यह करता है :: वह अपना भोजन ढूंढता है, प्रजनन करता है , अपने तरीके से मस्ती करता है। तो क्या पशु और मनुष्य में मात्र यही फर्क है कि मनुष्य कपडे पहनते हैं और सभ्य कहलाते हैं।
 सदा पैसा कमाने की धुन में रहना या हमेशा मनोरंजन के सपने देखना एक आध्यात्मिक बीमारी है, जो आज हर व्यक्ति को जकड़े हुई है।

मनुष्य होने का अर्थ है मनुष्यता । मनुष्यता जिसमें हम स्वयं को समाज का एक अंग मानते हुए अपने समय-पैसे-मेहनत का एक भाग समाज के विकास में नियोजित करें । बिना मनुष्यता का धर्म निभाए कोई भी सुखी संतुष्ट नहीं रह सकता भले ही उसके पास पैसे-सम्पन्नता-सुविधा का भण्डार हो, मन में आनंद आत्मा में शांति परलोक में सद्गति कभी प्राप्त नहीं हो सकती ।

अतः जीवन में मनुष्यता को स्थान दें । समाज का बड़ा वर्ग बहुत ही पीड़ा से भरी जिंदगी जी रहा है, उसे सहारा दें। प्रकृति रो रही हैं, वृक्षारोपण करें । समाज में नैतिकता, सदाचार समाप्त हो रहता है। स्वयं नैतिक जीवन जियें औरों को नैतिक शिक्षा दें। हम सब में इतनी क्षमता है यदि हम अपनी मनुष्यता को पेहचानलें तो समाज के विकास के लिए सरकार पर निर्भरता ही समाप्त हो सकती है। औरों को ना देखते अपने जीवन से शुरुआत करें।

अपने मित्र,परिवार, पड़ोस के साथ समाज विकास का मनुष्यता भरा जीवन स्वीकार करें ।  जिसमें विकास हो मनोरंजन हो सेवा हो ।




Monday, July 6, 2015

Prayavaran Based Development

विकास का  प्रमुख आधार : पर्यावरण

शहरीकरण के इस दौर में वर्तमान सरकार विकास-विकास की बात कर रही है, smart cities बनाने  की बात कर  रही है, शहरों को और बढ़ाने की बात कर रही है, सडकों के निर्माण कर दूरदराज के क्षेत्रो को जोड़ने की बात कर रही है । विकास की आवश्यकता हम सबको है लेकिन यह जान लेना भी परम आवश्यक है कि विकास मतलब क्या ? क्या कंक्रीट की बिल्डिंग खड़े कर देना विकास है? क्या खेती की जमीनी लेकर उनपर मकान बना देना विकास है? क्या हरे-भरे पेड़ काट कर सड़क निर्माण करना विकास है?
जीवन को सुविधाजनक, सुरक्षित, शिक्षित, आनन्दायक बनाने के लियें हम जीवन भर मेहनत करते है।  अच्छा बड़ा मकान, अच्छी नौकरी/व्यापार,  अच्छी गाडी,  मनोरंजन के लियें सुविधाएँ, अच्छी शिक्षा,  सुरक्षा-चिकित्सा की सुविधाएँ यह सब हम पाना चाहते है, निश्चित रूप से सरकार भी अपनी योजनाओं द्वारा हमें यही देना चाहती है ।
  लेकिन विकास के इस दिव्यस्वप्न में हम यह क्यों भूल जाते हैं  एक मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है  सांस लेने के लियें साफ़ हवा, छायादार वृक्ष,  खाने के लियें स्वस्थ अनाज, पीने के लियें साफ़ पानी ।  बिना साफ़ हवा, पानी, अनाज के हम ऊपर दी गयी किसी भी विकास योजना के बारे में सोच भी नहीं सकते ।   और दुःख इसी बात का है कि हम अपनी विकास की तमाम योजनाओं में  पर्यावरण, साफ़ स्वस्थ हवा, पानी, अनाज  के लियें कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे ।  हम पश्चिमी देशों के पीछे विकास की दौड़ में अदूरदर्शी हो  दौड़ रहे हैं,  बिना यह सोचे कि हमारे देश की मनःस्थिति परिस्थिति अन्य देशों से भिन्न है ।
    गाँवों से  बने इस देश की मूल भूत ईकाई, गाँव हैं । जहाँ खेती होती हैं, जहाँ से अनाज मिलता है, जहाँ देश का सर्वाधिक प्रतिशत वन्य जीवन/पर्यावरण आता है । पिछले कई दशकों की गड्बडों से गावों में खेती में भारी कमी आई है, किसान आज भी अशिक्षित एवं असहाय है। हर वर्ष मानसून की प्रताड़ना और सरकार की उपेक्षा से  आहत किसान आत्महत्या करता है । जब हम शहर में एयरकंडीशन में बैठ कर पिज्जा खा रहे होते हैं तब हमारे लियें अनाज पैदा कर रहा किसान, मानसून की प्रताड़ना और सरकार की उपेक्षा से दुखी अपने परिवार को सुखद भविष्य की झूठी सांत्वना दे रहा होता है ।  खेती की  दुर्दशा के कारण हर वर्ष बड़ी संख्या में किसान खेती छोड शहर का रुख करते हैं जिससे अपने परिवार का पेट तो भर सकें ।  इस कारण शहरों में जनसँख्या अत्यधिक रूप से बढ़ती जा रही है ,  जिससे महंगाई, प्रदूषण, अपराध सब तेजी  से बढ़ रहा है ।
   सड़क,  मकान,  फैक्ट्री इत्यादि बनाने के लिए तेजी से खेती की उपजाऊ जमीन ले कर , हरे भरे पेड़ काट कर हम विकास कररहे है। किसान को खेती से हटा कर उसे शहर आकर कीड़े-मकौड़े का जीवन जीने के लियें मजबूर कर रहे हैं।  गावं खत्म हो रहे हैं और शहर मोटे होते जा रहे हैं । और इस विकास में हम आधुनिक भारत की कल्पना कररहेँ है । कृपया आप ही बताएं ये  कल्पना सुखद होगी या भयावह ?
       इस आधुनिक भारत में हमारे पास सुन्दर मकान तो  होगा लेकिन पीने का पानी समाप्त हो गया होगा ।  हम शिक्षित तो होंगें लेकिन खाने के लियें समुचित पोषक तत्वों से युक्त अनाज ही नहीं होगा ।  हमारे पास पैसे तो होंगे लेकिन लेने के लियें साफ़ हवा नहीं होगी ।  और यह कोई ज्यादा दूर की बात नहीं दिल्ली, बंगलोरे जैसे शहर इस रस्ते पर चल पड़े हैं ।
    हमें चाहियें ऐसी योजना जिसमें भारत के गावँ उजड़े नहीं सुधरें।  कृषि का क्षेत्र  विज्ञानं की मदद से बेहतर बने । किसान आत्महत्या ना करें और ना ही खेती छोड़े, अपितु खेती से ही अपने परिवार का सुखद भविष्य बनाये ।  निम्न वर्ग को शिक्षित कर उन्हें जनसँख्या बढ़ाने की जगह जीवन को बेहतर बनाने का मार्ग दिखाएँ ।  सड़क बनाने हेतु पेड़ काटने की जगह उन्हें विस्थापित किया जाये और जितने पेड़  काटने हो उससे अधिक पेड़ पहले लगाये जाएँ ।  
  हमें आधुनिक भारत की कल्पना में पर्यावरण को प्रथम स्थान पर रखना ही होगा, क्योकि बिना इस आधार के बाकी सभी विकास बेमाने हैं । यह तथ्य हमारे निजी जीवन में भी लागू होता है। अपने जीवन में विकास की योजनाओं में भी हमें पर्यावरण को प्रथम स्थान देना होगा । अपने घर में खुले मैदान में वृक्ष लगाएं, स्वास्थ्य संवर्धन हेतु साफ़ हवा, मिटटी में योग प्राणायाम करें, अपने तन-मन को स्वस्थ विकसित  करें।  जब पेड़ अपनी छाया, फल, हवा हमें सरकार के द्वारा नहीं अपितु सीधे देते हैं तो फिर हम वृक्ष लगाने के लियें  सरकार का मुँह क्यों देखें ।   ज्यादा ना सही लेकिन अपने घर में पड़ोस में पर्यावरण को  बचाने एवं बढ़ाने के लियें ठोस कदम तो हम  उठा ही सकते हैं । यही आज के विषम समय  की मांग भी है ।