Friday, May 1, 2015

Vasna_Apraadh

आखिर क्यों पैदा हो रहे हैं समाज में वहशी दरिंदे


बलात्कार, हत्या, लूट, फ़रेब अब आम बात हो चली है। एक समय था जब समाचार में किसी की हत्या पढ़ कर मन दुखी होता था । अब अपराध की ऐसी आंधी चली है, कि हमारी संवेदनशीलता ही कम होती जा रही है। और यह जघन्य अपराध करने वाले कोई विदेशी या परग्रही नहीं, हमारे ही समाज के भटके हुए व्यक्ति हैं ।
  अपराध बढ़ा है और अनियंत्रित होता जा रहा है । प्रशासन पहले ही पंगु था अब पूर्णतः असहाय दिख रहा है। और इसका पूरा खामियाजा भुगत रहे हैं हम आम लोग जो कि परिस्थितियों से आँखे मूंदे, चाय की चुस्कियों पर चर्चा करके, मन की भड़ास को सरकार-पुलिस पर निकल कर, शांत हो कर सो जाते हैं, और यह उम्मीद करते हैं कि जो आज औरों के साथ हो रहा है, वो हमारे साथ कभी नहीं होगा।
   दुःख की बात है कि आज के विचारक न्यूज़ चैनल्स भी समस्या का सटीक विश्लेषण और समाधान नहीं सुझा पा रहे है। निसन्द्देह प्रशासन की सुस्ती की कीमत आम जनता को चुकानी पड़ रही है, और उसमे सुधार की अपार संभावनाएं हैं, परन्तु प्रशन यही भी है कि क्या कारण है हमारे समाज से एकाएक अपराधी, बलात्कारी व्यक्ति पैदा हो रहे है।
   कीड़े-मकौड़े बढ़ जाएँ तो उनकी रोकथाम के साथ उनके पैदा होने पर भी अंकुश लगाना पड़ता है। गंदगी को चिन्हित करके साफ़ करना पड़ता हैं नहीं तो रोकथाम के बड़े बड़े उपाय भी धराशायी हो जाते हैं। हमारे ही पास-पड़ोस के लोग यदि अपराध करने लगें तो कहाँ तक पुलिस बुलाएँगे। क्योकि पुलिस तो स्वयं राजनीतिज्ञों की कठपुतली है ।
      ख़राब प्रशासन, लचर कानून व्यवस्था एक बड़ी परेशानी है । व्यक्ति को जब भय नहीं होता तो वह अपराध करने से नहीं हिचकता। उसे पता होता है कि पकड़ा क्या तो या तो रिश्वत दे कर या सिफारिश लगा कर बच जाऊंगा । अदालत में केस चलता रहेगा और मैं जमानत पर मौज उडाता रहूंगा ।  राजनीतिज्ञों की छुपी पनाह में इस प्रकार अपराध फल फूल रहे हैं ।
       व्यक्ति में जब आदर्श और संवेदना मर जाती है तो उसके सामने एक ही लक्ष्य रहता हैं, किसी भी तरीके से पैसा कमाऊ और अय्याशी का जीवन जियूं  । वासना की आग जब प्रबल हो जाती है तब मान-मर्यादा सब उस आग में जल जाते हैं । फिर तो इंसान अपने कर्मों से शैतान को भी पीछे छोड़ देता है । धर्म के नाम पर जब विवेक की आँखों पर काली पट्टी बांध दी जाती हैं, तब उसकी सही-गलत की परिभाषा ही विकृत हो जाती है ।
       बचपन की अवस्था पूरे जीवन की नीवं होती है । इसी समय निर्धारित हो जाता हैं कि यह बच्चा पूत बनेगा या कुपूत । यदि हमारे देश की शिक्षा पद्धति इतनी व्यवस्थित एवं विकसित हो कि वो देश में पल रहे हर बच्चे किशोर तक पहुंचे एवं उसके अंतर्मन में आदर्शवादी जीवन, सद्भावना, सद्विचार, सद्चरित्र का रोपण कर सके तो भविष्य में पैदा हो सकने वाले अपराध की जड़ ही कट जाएगी । प्राचीन भारत में यह शिक्षा व्यवस्था ही थी कि हर मनुष्य सद्चरित्र एवं सुसंस्कारी बनता था । अब जब अपराधी ही न होंगे तो अपने आप अपराध भी नहीं होगा । कई विकसित राष्ट्र जैसे जापान, यूरोप इत्यादि अब इस विषय की गंभीरता समझ चुके हैं और तेजी से इस विषय पर काम कर  रहे हैं ।
       हमारे समाज अब सिर्फ विज्ञापन, व्यापार और मुनाफे की जगह बन कर रह गयी है। यहाँ से मर्यादा, संस्कार, नीति, विवेक, प्रेमभाव सर्वथा लोप होता चला है। विज्ञापनों की आंधी ऐसी है जिसमे आम आदमी भावनात्मक वेग में बह जाता हैं और बार बार दिखाएँ जा रहे झूठे वायदों से भरे विज्ञापनों को सच मान कर अपना-अपने परिवार का नुक्सान कर रहा है जिसमें लाभ काम और हानि अधिक रहती है ।
      हमारे समाज में बच्चे साथ में रहते हैं लेकिन फिल्म और टेलीविज़न पूर्णतः व्यस्कों को लक्ष्य बना करे दिखाया जाता है । अश्लीलता और हिंसा से भरे फिल्मे, विज्ञापन, कार्यक्रम, पत्रिका इत्यादि बच्चो में कोमल मन में बचपन से ही विष घोल देती हैं ।आज सनी लियोने के गानो पर डांस करने वाली बच्ची यह सोच लेती है कि हीरोइन बड़े लोग हैं वो जो करे सो सही । ऐसे में वो बड़ी हो कर सनी लियोने नहीं बनेगी तो और क्या अपेक्षा की जाएँ उनसे।         
        वासना एक आग की तरह है, इसे मर्यादित रखना परम आवश्यक हैं नहीं तो यह व्यक्ति के साथ में पूरे समाज को जला देती हैं ।  और आज इंटरनेट, स्मार्ट फ़ोन, फ़िल्में के माध्यम से अश्लीलता सर्वाधिक सुलभता से उपलब्ध हैं।  अश्लीलता हाथो हाथ बिकती है सो सारी फिल्मे उसी पर आधारित हैं, क्योकि उनका उद्देश मनोरंजन के नाम पर आपसे मुनाफा कामना मात्र है । बाकि सामाजिक दिशा धरा से कोई लेना देना नहीं । अशिक्षित व्यक्ति, अधकचरे मानस वाले किशोर/वयस्क, असयंमित जीवन जीने वाले पढ़े-लिखे लोग भी जो हानि लाभ नहीं समझते इस वासना की आग में आसानी से जल जाते हैं । चरित्र-संस्कार-मर्यादा क्या चीज़ होती हैं उन्हें ना किसी ने बताया, ना उन्होंने किसी को देख। उन्होंने सिर्फ यह देखा की स्त्री वासना पूर्ती का माध्यम है। फिर जो फिल्मो में देखते हैं उसे आदर्श सही मान जीवन में कर डालते है। हैवानियत की हदें पार कर जाते हैं ।
      समाज में आज व्यक्ति सिर्फ अपने से मतलब रखता हैं । सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा विकृत हो चला है कि उसे कुछ सूझता ही नहीं । पडोसी पडोसी से कोई मतलब नहीं रखता ।  देश का एक वर्ग धनि बनता जा रहा है, तो एक बड़ा वर्ग गरीबी में रहता हुआ दूसरो को मज़े उडाता देख रहा है । फिर वह भी अमीरी भरा जीवन जीने के लियें अपराध करने से नहीं हिचकते ।
      सामाजिक जिम्मेदारी यह कहती हैं कि यदि आपके पास आवश्यकता से अधिक है जिसकी आपको जरूरत नहीं तो उसके उन्हें दान करदो जिन्हें उसकी सर्वाधिक जरूरत हो । यदि आप शिक्षित है तो कुछ समय गरीब बच्चो को महिलाओं को पढने में लगाएं।  आप के पास धन अधिक हैं तो उसे किसी की शिक्षा, ईलाज, भोजन का प्रबंध करें। आप के पास प्रतिभा है तो उसे किसी की परेशानी हल करने में लगाएं ।  यह सामाजिक जिम्मेदारी अनिवार्य है, जो इसका पालन नहीं करता उसके पास सबकुछ होते हुए भी हृदय में एक बैचैनी, मन में एक छटपटाहट, विकलता सदैव रहती है । उनकी अंतरात्मा सदैव उन्हें झंझोड़ती रहती हैं कि उठो कुछ करों । जीवन का सदुपयोग करों ।
        मित्रों हमारा देश हमारी जिम्मेदारी है। क्यों ना हम अपनी जिम्मेदारियों को अपने हाथ में लेलें । क्यों ना हम अपने समय-प्रतिभा-धन-शिक्षा को जरूरत मंदों की सेवा में लगाना शुरू करें । थोड़ा ही सही लेकिन करें  अवश्य । क्यों न हम फिल्म-टेलीविज़न-पत्रिका में परोसी जा रही अश्लीलता और हिंसा का विरोध करें और उन्हें बता दें कि हमारे बच्चों और समाज में जहर ना घोले, अपितु अपनी कला का सदुपयोग करे। बिना हिंसा-अश्लीलता का सहारा लियें अच्छा मनोरंजन बनायें और दिखाएँ । क्यों ना हम अशिक्षितों, अल्पसंख्यक, कमजोरों, बच्चो एवं महिलाओं के लियें  संस्कार और चरित्र पर आधारित शिक्षा वयवस्था खड़ी करें जो उन्हें अच्छा मनुष्य बनायें ।
      मित्रों अब केवल यही रास्ता हमारे सामने रह गया हैं। किसी और से उम्मीद करनी बेकार है, जो करना है हमें ही करना है। बच्चो महिलाओं की मूल्य आधारित शिक्षा से ही एक नहीं जिम्मेदार सद्चरित्र पीढ़ी का निर्माण होगा जो की अपराधी नहीं होगी, अपितु जब प्रशासन, सरकार, पुलिस में ही जाएगी तो वहां भी सत्य का पक्ष लेते हुए असत्य से लोहा लेगी ।  किसी और का मुँह मत देखियें स्वयं आगे बढ़िए। सेवा के राष्ट्र निर्माण के इस मार्ग पर जब आप एक कदम भी आगे बढ़एंगे, तो आप पाएंगे कि आप अकेले नहीं, और आप पाएंगे ईश्वर का अमूल्य आशीर्वाद जो आपके जीवन में आत्मिक सुख, जन प्रेम और चिरकालीन प्रसिद्धि बन कर आएगा ।

|| सर्वेः भवन्तु सुखिनः ||

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