क्या आप शिक्षित, नौकरीपेशा/व्यापारी है?
क्या आप आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है?
क्या आप घर-गृहस्थी संभाल रहीं कुशल गृहणी हैं?
क्या आप अपने जीवन में केवल आजीविका अर्जन, घर-गृहस्थी, मौज-मस्ती तक ही सिमित हैं?
सावधान !! कहीं आप भटकी हुई प्रतिभा तो नहीं।
पैसा कमाना, परिवार बनाना उसका पालन-पोषण करना, मौज मस्ती से जीना यह जीवन के आवश्यक अंग हैं । बिना पैसे के आज के समय में अच्छा जीवन अत्यंत कठिन है। मनोरंजन भी हमारे लिए आवश्यक है।
परन्तु देखा जाए तो एक पशु भी यह करता है :: वह अपना भोजन ढूंढता है, प्रजनन करता है , अपने तरीके से मस्ती करता है। तो क्या पशु और मनुष्य में मात्र यही फर्क है कि मनुष्य कपडे पहनते हैं और सभ्य कहलाते हैं।
सदा पैसा कमाने की धुन में रहना या हमेशा मनोरंजन के सपने देखना एक आध्यात्मिक बीमारी है, जो आज हर व्यक्ति को जकड़े हुई है।
मनुष्य होने का अर्थ है मनुष्यता । मनुष्यता जिसमें हम स्वयं को समाज का एक अंग मानते हुए अपने समय-पैसे-मेहनत का एक भाग समाज के विकास में नियोजित करें । बिना मनुष्यता का धर्म निभाए कोई भी सुखी संतुष्ट नहीं रह सकता भले ही उसके पास पैसे-सम्पन्नता-सुविधा का भण्डार हो, मन में आनंद आत्मा में शांति परलोक में सद्गति कभी प्राप्त नहीं हो सकती ।
अतः जीवन में मनुष्यता को स्थान दें । समाज का बड़ा वर्ग बहुत ही पीड़ा से भरी जिंदगी जी रहा है, उसे सहारा दें। प्रकृति रो रही हैं, वृक्षारोपण करें । समाज में नैतिकता, सदाचार समाप्त हो रहता है। स्वयं नैतिक जीवन जियें औरों को नैतिक शिक्षा दें। हम सब में इतनी क्षमता है यदि हम अपनी मनुष्यता को पेहचानलें तो समाज के विकास के लिए सरकार पर निर्भरता ही समाप्त हो सकती है। औरों को ना देखते अपने जीवन से शुरुआत करें।
अपने मित्र,परिवार, पड़ोस के साथ समाज विकास का मनुष्यता भरा जीवन स्वीकार करें । जिसमें विकास हो मनोरंजन हो सेवा हो ।
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