जानिए किस प्रकार के मनुष्य हैं हम ?
विवेक : विवेक वह परिष्कृत बुद्धि है, जिसके आधार पर हम सही-गलत, हानि-लाभ के निर्णय लेते हैं । हमारे विवेक अर्थात समझदारी का स्तर ही हमारी Quality of Life decide करता है । शिक्षा, धन होने के बाद भी परेशान, दुखी, बीमार, जीवन जीना और विपन्न होते हुए भी संतुष्ट, प्रसन्न, सफल जीवन जीना मनुष्य के विवेक पर निर्भर है । कई शिक्षितों में भी विवेक बुद्धि नहीं होती, और कई अनपढ़ में भी बहुत अच्छी समझदारी होती है ।
वैज्ञानिक-अध्यात्मवाद के ऋषि हमें बताते हैं कि संसार भर के मनुष्यों को उनके विवेक के आधार पर चार वर्गों में विभक्त किया जाता है ।
Ignorant (आर्तः):- यह व्यक्ति अपने मतलब के यार होते हैं । किसी और के भले बुरे से इन्हें कुछ लेना देना नहीं होता, यहाँ तक कि अपनी बुरी आदतों से अपना खुद का नुक्सान भी करते हैं । मस्ती मज़े से जीना मात्र इनका मकसद होता है किसी भी कीमत पर । दूरदर्शिता का आभाव होता हैं, निर्णय क्षमता कम होती है । अक्सर कंफ्यूज रहते हैं । असुरक्षा, डर, हीनता, अविश्वास, नकारात्मकता के विकारों से ग्रसित रहते हैं । केवल दुःख के समय ही अपने ईश्वर/अल्लाह को याद करते हैं ।
इस प्रकार के व्यक्ति को केवल क्षणिक आनंद की प्राप्ति ही हो पति है। गलत कर्मो के कारण सदैव असंतुष्टि, आत्मग्लानि, पश्चाताप बना रहता है, जिसे दबाने के लियें फिर कामवासना, शराब, ड्रग्स तक का सहारा लेता है। जीवन दिशा हीन रूप में चलता है और अंतिम परिणाम में शोक-पश्चाताप-दुःख के सिवा कुछ नहीं बचता ।
Desirous (अर्थार्थी):- भोग- विलास की वस्तु संगृहीत करने की प्रबल लालसा होती है । बड़ी गाडी, बड़ा पैसा, ऐशों आराम ही इनका सपना होता है । अपना पेट अपना परिवार ही इनकी दुनिया होती है । समाज के भले के लियें कुछ खास योगदान नहीं करते बस अकारण किसी को नुक्सान नहीं देते । मनोकामनाएँ ले कर मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा इत्यादि में जाते हैं और ईश्वर के साथ मनौती पूरी करों और प्रसाद लो का व्यापार करते हैं । वर्तमान समय में ज्यादातर मनुष्य Ignorant-Desirous स्तर के हैं ।
इस प्रकार के व्यक्ति अपने लियें साधन-सामग्री तो जुटा लेता है, परन्तु असंतुष्टि सदैव बानी रहती है । ज्यादा से ज्यादा पाने के लालच से वह भीतर से खोखला होता चला जाता है । कामनाएँ कभी पूरी नहीं होती, अपितु विष बनकर जीवन ले जाती हैं । सिर्फ स्वार्थ भरा जीवन जीने से इनकी अंतरात्मा सदैव इन्हें कचोटती रहती है । जिन समाज में ऐसे लोग ज्यादा होते हैं, वहां स्वार्थ वृति प्रभावी हो जाती है, वहां हिंसा, अपराध, अश्लीलता बढ़ जाती है ।
Seekers (जिज्ञासु):- विवेक के जागरण के साथ इन्हें मनुष्य एवं मनुष्यता का एहसास होता है । ये जानते हैं कि केवल पेट-परिवार ही जीवन नहीं, अपितु देश-समाज भी हमारी जिम्मेदारी है। अपने आप को भौतिकता से निकाल कर आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं और ज्ञान को प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं । अपना जीवन केवल मौज मस्ती के लियें नहीं अपितु किसी लोक उपयोगी उद्देश्य के साथ जीते हैं । बुरी आदतों पर संयम रखकर अपने शरीर-मन-आत्मा के उत्थान के लियें सदैव प्रत्यनशील रहते हैं । देश के अच्छे नागरिक, समाज के सेवक एवं परिवार के अच्छे सदस्य, अच्छे मित्र साबित होते हैं ।
इस प्रकार के व्यक्ति एक अच्छे दोस्त, अच्छे नागरिक होते हैं । जीवन के मूल उद्देश्य को पहचान कर आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं । लोकसेवी के कार्यों में भाग लेने से लोक यश मिलता है और जीवनधर्म पालन से ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । उत्तम स्वास्थ्य, एवं आनंदित मन के साथ जीते है। इनका समाज सदैव समृद्ध, सुरक्षित एवं प्रगतिशील होता है ।
Wise (ज्ञानी):- जीवन के वास्तविक स्वरुप को प्राप्त, स्वार्थ रहती जीने वाले परोपकारी-ज्ञानी व्यक्ति । आत्मा-परमात्मा के बोध को प्राप्त ज्ञानी पुरुष समस्त स्वार्थों, बंधनों से ऊपर उठ जाते हैं, एवं दूसरों के हित के लियें अपना जीवन लगा देते हैं । लोकसेवी-महात्मा-संत-महामानव सभी ज्ञानी पुरुष ही होते हैं । धरती पर सत्य-न्याय-प्रेम के अस्तित्व को यही जीवित रखते हैं ।
धरती पर ईश्वर के रूप में रहने वाले ज्ञानी पुरुष, विवेकहीनो को विवेक देते हैं, अज्ञानियों को ज्ञान देते हैं । कष्टों से मानवजाति को उबरते हैं और आदर्शवादी जीवन जी कर दूसरो के लियें उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । इन्हीं महापुरषों के कारण धरती पर पुण्य का सत्य का अस्तित्व बना रहता है । जिस समाज में एक भी ज्ञानी होते हैं तो वह समाज धन्य कहलाता है । वहां के सभी मनुष्य अज्ञानी से ज्ञानी विवेकवान होते चले जाते हैं ।
इस प्रकार हम जान सकते हैं कि हमारा विवेक का स्तर क्या है। उसी स्तर के अनुसार हमारे जीवन की गति भी होगी। धन से जीवन सुविधाजनक मात्र बनता है, परन्तु जीवन की दिशा-धारा उसकी गति और जीवन का अंतिम परिणाम हमारे विवेक पर निर्भर करता है । मित्रता भी हम अपने विवेक स्तर अनुरूप व्यक्ति से ही करते हैं ।
उदाहरण जेम्स के पास बहुत धन था, परन्तु विवेक की कमी थी । उसने बिना सेहत की फ़िक्र करें, Junk Food , Alcohol, और फिजूलखर्ची में अपना जीवन व्यतीत किया । मात्र दिखावे का जीवन जिया । उसने स्वास्थ्य की समझदारी नहीं दिखाई तो उसे बिमारियों ने घेर लिया । पैसों की फिजूलखर्ची की तो उसके कई व्यापार दिवालिया हो गए । दिखावे का जीवन जिया तो उसके बहुत सारे झूठे मित्र बने जो मुश्किल समय में उसका साथ छोड़ कर चले गए । जीवन में सुविधा का उपभोग तो उसने जीभर कर किया, पर अंतः परिणाम में उसके हाथ कुछ ना रहा ।
हम भी विवेक के आभाव में ऐसी कई छोटी बड़ी भूल करते हुए जी रहे है । इससे हमारे ही जीवन के परिणाम गलत होते जा रहे हैं । और सामूहिक रूप से होने वाली इन भूलों के कारण पूरा समाज आज अश्लीलता, अपराध, हिंसा, भ्रष्टाचार का शिकार हो गया है । हम अपने जीवन में स्वयं दुःख आमंत्रित करते हैं और समाज को भी दुखी बनाते है ।
अतः मित्रों ! जीवन को सुविधाजनक बनाने के लियें धन का उपार्जन करें और जीवन के परिणाम को सफल बनाने हेतु विवेक पूर्वक जीवन जियें, विवेक को बेहतर बनायें । इससे न केवल आपका जीवन आनंदमय होगा, बल्कि आपका परिवार और समाज दोनों सुखी होंगे । समाज सेवा करने का यह बहुत ही अद्धभुत एवं आसान मार्ग है ।
वैज्ञानिक-अध्यात्मवाद के ऋषि हमें बताते हैं कि संसार भर के मनुष्यों को उनके विवेक के आधार पर चार वर्गों में विभक्त किया जाता है ।
Ignorant (आर्तः):- यह व्यक्ति अपने मतलब के यार होते हैं । किसी और के भले बुरे से इन्हें कुछ लेना देना नहीं होता, यहाँ तक कि अपनी बुरी आदतों से अपना खुद का नुक्सान भी करते हैं । मस्ती मज़े से जीना मात्र इनका मकसद होता है किसी भी कीमत पर । दूरदर्शिता का आभाव होता हैं, निर्णय क्षमता कम होती है । अक्सर कंफ्यूज रहते हैं । असुरक्षा, डर, हीनता, अविश्वास, नकारात्मकता के विकारों से ग्रसित रहते हैं । केवल दुःख के समय ही अपने ईश्वर/अल्लाह को याद करते हैं ।
इस प्रकार के व्यक्ति को केवल क्षणिक आनंद की प्राप्ति ही हो पति है। गलत कर्मो के कारण सदैव असंतुष्टि, आत्मग्लानि, पश्चाताप बना रहता है, जिसे दबाने के लियें फिर कामवासना, शराब, ड्रग्स तक का सहारा लेता है। जीवन दिशा हीन रूप में चलता है और अंतिम परिणाम में शोक-पश्चाताप-दुःख के सिवा कुछ नहीं बचता ।
Desirous (अर्थार्थी):- भोग- विलास की वस्तु संगृहीत करने की प्रबल लालसा होती है । बड़ी गाडी, बड़ा पैसा, ऐशों आराम ही इनका सपना होता है । अपना पेट अपना परिवार ही इनकी दुनिया होती है । समाज के भले के लियें कुछ खास योगदान नहीं करते बस अकारण किसी को नुक्सान नहीं देते । मनोकामनाएँ ले कर मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा इत्यादि में जाते हैं और ईश्वर के साथ मनौती पूरी करों और प्रसाद लो का व्यापार करते हैं । वर्तमान समय में ज्यादातर मनुष्य Ignorant-Desirous स्तर के हैं ।
इस प्रकार के व्यक्ति अपने लियें साधन-सामग्री तो जुटा लेता है, परन्तु असंतुष्टि सदैव बानी रहती है । ज्यादा से ज्यादा पाने के लालच से वह भीतर से खोखला होता चला जाता है । कामनाएँ कभी पूरी नहीं होती, अपितु विष बनकर जीवन ले जाती हैं । सिर्फ स्वार्थ भरा जीवन जीने से इनकी अंतरात्मा सदैव इन्हें कचोटती रहती है । जिन समाज में ऐसे लोग ज्यादा होते हैं, वहां स्वार्थ वृति प्रभावी हो जाती है, वहां हिंसा, अपराध, अश्लीलता बढ़ जाती है ।
Seekers (जिज्ञासु):- विवेक के जागरण के साथ इन्हें मनुष्य एवं मनुष्यता का एहसास होता है । ये जानते हैं कि केवल पेट-परिवार ही जीवन नहीं, अपितु देश-समाज भी हमारी जिम्मेदारी है। अपने आप को भौतिकता से निकाल कर आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं और ज्ञान को प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं । अपना जीवन केवल मौज मस्ती के लियें नहीं अपितु किसी लोक उपयोगी उद्देश्य के साथ जीते हैं । बुरी आदतों पर संयम रखकर अपने शरीर-मन-आत्मा के उत्थान के लियें सदैव प्रत्यनशील रहते हैं । देश के अच्छे नागरिक, समाज के सेवक एवं परिवार के अच्छे सदस्य, अच्छे मित्र साबित होते हैं ।
इस प्रकार के व्यक्ति एक अच्छे दोस्त, अच्छे नागरिक होते हैं । जीवन के मूल उद्देश्य को पहचान कर आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं । लोकसेवी के कार्यों में भाग लेने से लोक यश मिलता है और जीवनधर्म पालन से ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । उत्तम स्वास्थ्य, एवं आनंदित मन के साथ जीते है। इनका समाज सदैव समृद्ध, सुरक्षित एवं प्रगतिशील होता है ।
Wise (ज्ञानी):- जीवन के वास्तविक स्वरुप को प्राप्त, स्वार्थ रहती जीने वाले परोपकारी-ज्ञानी व्यक्ति । आत्मा-परमात्मा के बोध को प्राप्त ज्ञानी पुरुष समस्त स्वार्थों, बंधनों से ऊपर उठ जाते हैं, एवं दूसरों के हित के लियें अपना जीवन लगा देते हैं । लोकसेवी-महात्मा-संत-महामानव सभी ज्ञानी पुरुष ही होते हैं । धरती पर सत्य-न्याय-प्रेम के अस्तित्व को यही जीवित रखते हैं ।
धरती पर ईश्वर के रूप में रहने वाले ज्ञानी पुरुष, विवेकहीनो को विवेक देते हैं, अज्ञानियों को ज्ञान देते हैं । कष्टों से मानवजाति को उबरते हैं और आदर्शवादी जीवन जी कर दूसरो के लियें उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । इन्हीं महापुरषों के कारण धरती पर पुण्य का सत्य का अस्तित्व बना रहता है । जिस समाज में एक भी ज्ञानी होते हैं तो वह समाज धन्य कहलाता है । वहां के सभी मनुष्य अज्ञानी से ज्ञानी विवेकवान होते चले जाते हैं ।
इस प्रकार हम जान सकते हैं कि हमारा विवेक का स्तर क्या है। उसी स्तर के अनुसार हमारे जीवन की गति भी होगी। धन से जीवन सुविधाजनक मात्र बनता है, परन्तु जीवन की दिशा-धारा उसकी गति और जीवन का अंतिम परिणाम हमारे विवेक पर निर्भर करता है । मित्रता भी हम अपने विवेक स्तर अनुरूप व्यक्ति से ही करते हैं ।
उदाहरण जेम्स के पास बहुत धन था, परन्तु विवेक की कमी थी । उसने बिना सेहत की फ़िक्र करें, Junk Food , Alcohol, और फिजूलखर्ची में अपना जीवन व्यतीत किया । मात्र दिखावे का जीवन जिया । उसने स्वास्थ्य की समझदारी नहीं दिखाई तो उसे बिमारियों ने घेर लिया । पैसों की फिजूलखर्ची की तो उसके कई व्यापार दिवालिया हो गए । दिखावे का जीवन जिया तो उसके बहुत सारे झूठे मित्र बने जो मुश्किल समय में उसका साथ छोड़ कर चले गए । जीवन में सुविधा का उपभोग तो उसने जीभर कर किया, पर अंतः परिणाम में उसके हाथ कुछ ना रहा ।
हम भी विवेक के आभाव में ऐसी कई छोटी बड़ी भूल करते हुए जी रहे है । इससे हमारे ही जीवन के परिणाम गलत होते जा रहे हैं । और सामूहिक रूप से होने वाली इन भूलों के कारण पूरा समाज आज अश्लीलता, अपराध, हिंसा, भ्रष्टाचार का शिकार हो गया है । हम अपने जीवन में स्वयं दुःख आमंत्रित करते हैं और समाज को भी दुखी बनाते है ।
अतः मित्रों ! जीवन को सुविधाजनक बनाने के लियें धन का उपार्जन करें और जीवन के परिणाम को सफल बनाने हेतु विवेक पूर्वक जीवन जियें, विवेक को बेहतर बनायें । इससे न केवल आपका जीवन आनंदमय होगा, बल्कि आपका परिवार और समाज दोनों सुखी होंगे । समाज सेवा करने का यह बहुत ही अद्धभुत एवं आसान मार्ग है ।
॥ सर्वे भवन्तुः सुखिनः ॥
No comments:
Post a Comment