आखिर क्यों पुलिस कुछ नहीं करती ?
पुलिस कुछ नहीं करती या पुलिस को कुछ करने नहीं दिया जाता । दोनों बातों में बहुत फर्क है दोस्तों । पूरे देश में फ़ैल रहे अपराध और मुख्यतः रेप और सांप्रदायिक अपराध आज सभी के लियें चिंतनीय है। यदि यह इसी तरह बढ़ता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब यह आग हमारे घर तक भी पहुंच जायेगी । समाज में अपराध की रोकथाम की जिम्मेदारी पुलिस सिस्टम की है, परन्तु जिस तरह से अपराध बेकाबू होते जा रहे है, उससे लगता है कि इंडियन पुलिस सिस्टम में ही कुछ भारी गड़बड़ है ।
इंडियन पुलिस सर्विसेज (IPS) के माध्यम से देश के चुनिंदा होनहार नौजवानों को चुन कर समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जाती है । अच्छी ट्रेनिंग, अच्छी सुविधाएँ , सम्मानित अधिकार प्रदान कर समाज उन से विशेष उम्मीद लगता है । परन्तु देखने में यह आता है की इतने सब व्यवस्थाओं के बावजूद हमारी पुलिस क्यों कुछ नहीं कर पा रही है ?
मित्रों इंडियन पुलिस एक्ट 1861 वह मुख्य एक्ट है जिसके मुताबिक पूरे देश में पुलिस सिस्टम को मैनेज, रेगुलेट किया जाता है । और दुःख की बात यह है आजादी के 67 साल बाद भी अंग्रेजो के बनाये इस स्वार्थपूर्ण एक्ट को अभी तक नहीं सुधारा गया ।
1857 के इंकलाब के बाद अंग्रेज सरकार बहुत डर गयी थी, एवं किसी भी प्रकार के विद्रोह को रोकने के लियें अंग्रेज सरकार ने पोलिस एक्ट 1861 लाया था जिसमे सभी राज्यों को अपनी पुलिस होने का अधिकार होता था एवं अत्याचारी तरीकों से आम जनता के मानवीय मूल्यों को ताक पे रख कर पुलिस गिरफ़्तारी एवं शोषण करने के लियें स्वतंत्र थी । सारे अधिकार सिर्फ चुनिंदा शीर्ष के अधिकारीयों के पास होते थे जिसे वे मनमाने तरीके से उपयोग कर सकते थे । नारियों के लियें नाममात्र स्थान था आधुनिक ट्रेनिंग पर ध्यान नहीं दिया जाता था और ईमानदार-होशियार पुलिस कर्मी प्रमोशन के लियें मारे - मारे फिरते थे ।
भ्रष्टाचार एवं राजनैतिक दवाब के बीच हमारे होनहार पुलिस अधिकारी कुछ नहीं कर पाते । पुलिस एक्ट अनुसार राज्य के नेताओं को अपने-अपने राज्य की पुलिस को नियंत्रित एवं प्रभावित करने के पूरे अधिकार होते हैं । सुरक्षा में राजनीती के इस हस्तक्षेप से हमारा समाज लगातार हारता जा रहा है और मौजूदा भ्रष्टाचार इस आग में घी का काम कर रहा है । पुलिस एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर इतना पुराना एवं कमजोर है कि वह खुद मनमानी/भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है ।
भारत की आज़ादी के बाद पोलिस एक्ट में संशोधन करने का प्रयास अवश्य करा गया जैसे बिहार पुलिस एक्ट 2007, मुंबई पुलिस एक्ट 1951 , दिल्ली पुलिस एक्ट 1978 परन्तु क्या यह काफी है आज हम स्वयं इस का विश्लेषण कर सकते हैं । छोटे मोटे सुधारवादी नियम जरूर आये परन्तु उससे पूरा सिस्टम नहीं सुधरा जा सकता । इसकेलिए सम्पूर्ण बदलाव आवश्यक है , जोकि दृढ़ इच्छाशक्ति, ईमानदार प्रयास एवं जनता के पूर्ण समर्थन से ही संभव है ।
इंडियन पुलिस सर्विसेज (IPS) के माध्यम से देश के चुनिंदा होनहार नौजवानों को चुन कर समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जाती है । अच्छी ट्रेनिंग, अच्छी सुविधाएँ , सम्मानित अधिकार प्रदान कर समाज उन से विशेष उम्मीद लगता है । परन्तु देखने में यह आता है की इतने सब व्यवस्थाओं के बावजूद हमारी पुलिस क्यों कुछ नहीं कर पा रही है ?
मित्रों इंडियन पुलिस एक्ट 1861 वह मुख्य एक्ट है जिसके मुताबिक पूरे देश में पुलिस सिस्टम को मैनेज, रेगुलेट किया जाता है । और दुःख की बात यह है आजादी के 67 साल बाद भी अंग्रेजो के बनाये इस स्वार्थपूर्ण एक्ट को अभी तक नहीं सुधारा गया ।
1857 के इंकलाब के बाद अंग्रेज सरकार बहुत डर गयी थी, एवं किसी भी प्रकार के विद्रोह को रोकने के लियें अंग्रेज सरकार ने पोलिस एक्ट 1861 लाया था जिसमे सभी राज्यों को अपनी पुलिस होने का अधिकार होता था एवं अत्याचारी तरीकों से आम जनता के मानवीय मूल्यों को ताक पे रख कर पुलिस गिरफ़्तारी एवं शोषण करने के लियें स्वतंत्र थी । सारे अधिकार सिर्फ चुनिंदा शीर्ष के अधिकारीयों के पास होते थे जिसे वे मनमाने तरीके से उपयोग कर सकते थे । नारियों के लियें नाममात्र स्थान था आधुनिक ट्रेनिंग पर ध्यान नहीं दिया जाता था और ईमानदार-होशियार पुलिस कर्मी प्रमोशन के लियें मारे - मारे फिरते थे ।
भ्रष्टाचार एवं राजनैतिक दवाब के बीच हमारे होनहार पुलिस अधिकारी कुछ नहीं कर पाते । पुलिस एक्ट अनुसार राज्य के नेताओं को अपने-अपने राज्य की पुलिस को नियंत्रित एवं प्रभावित करने के पूरे अधिकार होते हैं । सुरक्षा में राजनीती के इस हस्तक्षेप से हमारा समाज लगातार हारता जा रहा है और मौजूदा भ्रष्टाचार इस आग में घी का काम कर रहा है । पुलिस एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर इतना पुराना एवं कमजोर है कि वह खुद मनमानी/भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है ।
भारत की आज़ादी के बाद पोलिस एक्ट में संशोधन करने का प्रयास अवश्य करा गया जैसे बिहार पुलिस एक्ट 2007, मुंबई पुलिस एक्ट 1951 , दिल्ली पुलिस एक्ट 1978 परन्तु क्या यह काफी है आज हम स्वयं इस का विश्लेषण कर सकते हैं । छोटे मोटे सुधारवादी नियम जरूर आये परन्तु उससे पूरा सिस्टम नहीं सुधरा जा सकता । इसकेलिए सम्पूर्ण बदलाव आवश्यक है , जोकि दृढ़ इच्छाशक्ति, ईमानदार प्रयास एवं जनता के पूर्ण समर्थन से ही संभव है ।
मित्रों यदि आप अपने घर, अपने प्रियजनों को तेजी से फैलाते हुए सामाजिक अपराधों से बचाना चाहते हैं, तो पुलिस को राजनैतिक दबावों, भ्रष्टाचार से मुक्त कराने कि मुहिम में शामिल हों । माननीय प्रधानमंत्री , सर्वोच्च न्यायालय तक यह आवाज़ पूरे दम से पहुंचानी होगी कि हम 21 सदी के नौजवान देश में घटियापन को बर्दाश्त नहीं करेंगे । सुरक्षा और स्वतंत्रता हमारा हक़ है , और इसके लियें यदि पुरानी दाखियानूसी सोच और बेबुनियाद के नियमों को बदलना भी पढ़े तो भी हम पीछे नहीं हटेंगे ।
~~ सबकेलिये सदबुद्धि, सबकेलिये उज्जवल भविष्य ~~
~~ शांतिः शांतिः ~~
~~ शांतिः शांतिः ~~
" Of all the branches of the public service in India, the police,
by its history and traditions, is the most backward in its character.
Its origin may be traced to the feudal obligation of the land-
owners to maintain, by means of an underpaid and disorderly
rabble, the semblance of order on their estates. The taint of
its earliest antecedents still affects the morale of the lower ranks :
the constable has inherited the reputation, if not the methods,
of the fairfcui'Jaz. The history of the Indian Police under
British rale is marked by a series of attempts to introduce more
advanced standards of conduct and integrity, and to raise the
tone of the force by improving the pay and prospects of its
members."
"The
advent of Indian independence transformed the political system, but the
police system retained its colonial underpinnings. The Police Act of
1861 was not replaced. Political control over the police remained
intact. Implanting mechanisms to assure accountability of the police to
the public it serves did not become a priority, as it should have. The
managerial philosophy, value system, and ethos of the police remained
militaristic in design, and suppressive in practice. To this day, the
police system in India can be characterized as a regime force, which
places the needs of politicians or powerful individuals over the demands
of the rule of law and the needs of citizens."
"The structure in the police force is strictly hierarchical and the decision making is centralised with a few high ranking police officers. Currently there is a four-level entry system to the Indian police force with little or no scope for a fresh recruit rising from the very bottom to the very top within the hierarchy. The minimum age to be recruited is 18 years and the upper limit is 20-27 years depending on the State. Postings and transfers are commonly interfered in, by political influence."
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