गुरुसाधना एवं गुरुकृपा
प्रिय मित्रो ! हमारे सामने ज्येष्ठ पूर्णिमा (13 जून) है एवं ठीक एक महीने बाद वह पावन दिन है जिसका हर शिष्य को बेसब्री से इंतजार रहता है "श्री गुरुपूर्णिमा" (12 जुलाई) । क्यों ना इस गुरुपूर्णिमा में हम विशेष गुरुसाधना द्वारा अपने शिष्यतत्व को जागृत करें एवं अपने प्रिय गुरुदेव का पूर्ण आशीर्वाद , उनका दिव्य प्रेम अनुदान प्राप्त करें। यदि आप यह चाहते हैं तो आगे की पंक्तियाँ आपके लियें हैं ।गुरु कृपा का विशेष अनुदान पाने का एक मात्र रास्ता होता है गुरुध्यान, गुरुभक्ति,गुरुसेवा,गुरुकार्य एवं गुरुआज्ञा पालन । और जब यह संकल्पित हो कर किया जाता है तो शिष्य की भक्ति, 'निष्ठा' की शक्ति में बदल जाती है एवं पूर्णाहुति के साथ ही उसे मिलता है गुरु का विशेष अनुदान । गुरु का विशेष आशीर्वाद जो कि शिष्य के जीवन को बदल देता है । शिष्य का आत्मिक कायाकल्प हो जाता है, भौतिक जीवन की परेशानियों से स्वयं मुक्ति मिलती है एवं बहुत कुछ जो हमारी कल्पना से परे है । आप स्वयं इसे अपने जीवन में अनुभव कर सकते हैं और प्रस्तुत समय (13 जून से 12 जुलाई, गुरुपूर्णिमा) इस उद्देश्य के लियें श्रेष्ठ समय है ।
हमारे गुरुदेव ने गुरुभक्ति,गुरुसेवा,गुरुकार्य एवं गुरुआज्ञा को एक सूत्र में गूंथ कर सरल बना दिया, एवं हमारे सामने रख दिया । वह सूत्र है "भाव भरी उपासना, स्वाध्याय, जीवन साधना एवं युग निर्माण कार्य की आराधना " और इन्हें करने के लिए "समयदान, श्रमदान, अंशदान" । कितना सरल रूप प्रस्तुत कर दिया गुरुदेव ने जिसमे गुरुभक्ति,गुरुसेवा,गुरुकार्य सब कुछ समा जाता है , और हम यह करते भी हैं ।
हम इन सूत्रों से परिचित हैं, परन्तु वह सूत्र जो इनको दिव्य बनाता है वह है "नियमितता-निरंतरता" । मित्रो पूज्य गुरुदेव ने कभी संख्या को महत्त्व नहीं दिया परन्तु गुणवत्ता पर हमेशा बल दिया । "नियमितता-निरंतरता" ही वह सूत्र है जो हमारे किसी भी छोटी से छोटी साधना या छोटे से युग निर्माण के कार्य को दिव्य बना सकता है हमे साधना के उच्चतर स्तर तक पहुंचा सकता है ।
नियमितता का अर्थ है निश्चित समय एवं निरंतरता का अर्थ है रोज़ करना । दुनिया इधर की उधर हो जाये, परन्तु हमारी "नियमितता-निरंतरता" पर आँच ना आने पाये । बुद्धिमानी यही होती है कि पहले "भाव भरी उपासना, स्वाध्याय, जीवन साधना एवं युग निर्माण कार्य की आराधना " के लियें बहुत ही छोटे संकल्प लिए जाएँ एवं उन्हें नियमित-निरंतर रूप में किया जाये । फिर धीरे-धीरे आत्म-प्रेरणा के आधार पर संकल्प बढ़ाये जाएँ ।
उपासना भले ही 10 मिनट की हो या 4 घंटे कि, भावभरी होनी चाहिए । स्वाध्याय चिंतन-मनन युक्त होना चाहियें । जीवन साधना में संयम के सूत्र एवं युगनिर्माण सत्संकल्प के सूत्र होने चाहिए एवं युगनिर्माण कार्य को अपनी रुचि, योग्यता, परिस्थिति अनुसार चयन करना चाहिए । इन सभी कार्यो को करने के लियें समय,श्रम,धन की आवश्यकता होगी । उसे श्रमदान-समयदान-अंशदान के रूप में निकालना चाहियें ।
इसके साथ एक दिव्य गुरुसाधना साधना भी है जिसे करते हुए एक सामान्य साधक भी धीरे आध्यात्म की ऊँचाइयों पर चल पड़ता है और पूर्ण गुरुभक्ति, गुरुकृपा प्राप्त कर अपना जीवन धन्य करता है । वह साधना है "श्री गुरुगीता" की अनुपम साधना ।
श्रीगुरुगीता के मंत्रो में वह दिव्य सामर्थ्य है कि वो पाषाण हृदय को भी महान गुरुभक्त बना दे । श्रीगुरुगीता के नियमित-निरंतर पाठ से साधक के अंतःकरण में गुरुकृपा का अवतरण होता है जो कि उसके जन्म-जमान्तरों के पापों को धो कर उसे शुद्ध-बुद्ध-पवित्र-निर्मल बना देता है । जो कई जन्मों की साधना से संभव नहीं होता वह मात्र श्रीगुरुगीता के पाठ एवं वेदमाता गायत्री की भावभरी उपासना से संभव हो जाता है । चाहे भौतिक-आध्यात्मिक कामना हो या निष्काम प्रेम भावना , सभी में श्रीगुरुगीता बिना माँगे समस्या का समाधान करती है , दिव्य अनुदान बरसाती है । लेकिन यह होता केवल उन्हें है जो संकल्पवान हैं, धैर्यवान हैं, मेहनत करना जानते हैं और उन्हें अपने गुरुदेव पर पूर्ण विश्वास है ।
संकल्प ले कि "मैं (नाम), (गोत्र) गोत्र, (क्षेत्र)क्षेत्र, (आज की तारीख) तिथि से पूर्ण गुरुकृपा प्राप्त करने हेतु पूरे मास(या जितना समय हो ) गुरुपूर्णिमा पर्यन्त, नियमितता एवं निरंतरता का पालन करते हुए (इतना) गायत्री उपासना , (इतना) स्वाध्याय , (इन संयमो की ) जीवन साधना एवं (इस कार्य की) आराधना करूँगा/करुँगी । नियमितता एवं निरंतरता का पालन करते हुए श्रीगुरुगीत का (इतना) जप करूंगा/करूंगी । कृपया संकल्प पूर्ण करने हेतु दिव्य आशीर्वाद प्रदान करें, दोष परिमार्जन प्रदान करें ।"
यहाँ 'इतना' में संख्या का महत्त्व नहीं है , यह 1 माला भी हो सकती है एवं 30 माला भी , यह 1 घंटे का स्वाध्याय भी हो सकता है या 1 पेज का भी, समय-अर्थ-विचार-इंद्रिय संयम में से कोई भी एक हो सकता है, युग निर्माण कार्य में विचार के पोस्ट भेजना या 5 स्टिकर चिपकाना जैसा कोई भी छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा कार्य हो सकता है । आवश्कता है इसे रोज़ करना एवं नियत समय पर करना । यही दिव्यता है ।
यदि आप संकल्पवान हैं, श्रद्धावान हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता की आप सफल ना हों । आपको गुरुदेव का दिव्य आशीर्वाद मिलेगा । वह आएंगे, आप से बात करेंगे, आप को प्यार भरा आशिर्वाद देंगे, आप का मार्गदर्शन करेंगे, कलुषित संस्कारों का नाश करेंगे एवं आप को भौतिक-आध्यात्मिक सफलता प्रदान करेंगे ।
तो फिर देर किस बात की । अवसर का लाभ उठाएँ । जितना अच्छा हमारा आत्म निर्माण होगा, उतना अच्छा हमारा युग निर्माण का कार्य होगा । युग परिवर्तन के महान अवसर को चूके नहीं । छोटे बलिदान दें एवं बड़े लाभ अर्जित करें ।
सबके लियें सद्बुद्धि, सबके लियें उज्जवल भविष्य ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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