क्या है युग परिवर्तन? क्यों जुड़े युगपरिवर्तन से?
परिवर्तन-बदलाव सभी ओर से सुनाई देने लगा है । कोई राजनैतिक परिवर्तन की बात करता हैं, कोई टेक्नोलॉजी बदलाव की बात करता है, कोई भाई सामाजिक बदलाव की बात करता है, तो कोई बहन नारी की स्थिति-शोषण-अपराध के प्रति बदलाव की बात करती है । और यह तो कुछ नहीं, कुछ लोग तो सीधे युग परिवर्तन-सतयुग की वापसी जैसे बड़े बदलाव की बात करते है ।
यह बात तो पक्की है कि दुनिया तेजी से बदल रही है| सामाजिक मूल्य, मानवीय परिभाषा, टेक्नोलॉजी का उपयोग, राजनीती, अर्थ शक्ति सब बड़ी तेजी से बदल रहा है, इस बात से आज सभी पढ़े लिखे सहमत हैं । परन्तु युग परिवर्तन और सतयुग की वापसी ना तो समझ में आता है, और ना ही संभव होता दीखता है, क्योकि अपराध, आतंकवाद, प्रदूषण और भ्रष्टाचार बड़ी तेजी से बढ़ता दिख रहा है ।
युग परिवर्तन होने के पीछे एक मात्र यही दलील है कि जितनी तेजी से अपराध, आतंकवाद, प्रदूषण और भ्रष्टाचार बढ़ते दिख रहा है, तो वह दिन दूर नहीं जब पूरी पृथ्वी मनुष्य के रहने लायक नहीं रह जाएगी और समष्ट जीवन नष्ट हो जायेगा, भले ही युद्ध से या प्रदूषण से । और ईश्वर जिन्होंने बड़े यतन से यह सृष्टि बनाई है, इसे इतनी आसानी से नष्ट होने ना देंगे ।
आत्महत्या की तरफ बढ़ते हुए मनुष्य जाति को रोकने और पुनः सात्विक जीवन की ओर मोड़ने के लियें जो परिवर्तन लगता है उसे 'युग परिवर्तन' कहते हैं। जब स्थितियां मनुष्य के हाथों से निकल जाती है, तब उसे सँभालने हेतु स्वयं ईश्वर 'युग परिवर्तन' का काम अपने हाथों में लेते है और इस काम को दुत्र गति से करते हैं। इसके छोटे स्वरुप में हम देख सकते हैं कि विश्व में मानवीयता और धर्म-अध्यात्म को समय-समय पर सँभालने हेतु कोई अवतार, महापुरुष, पैगम्बर, ईश्वर का दूत नियमित रूप से आते रहें हैं। यह सबूत है ईश्वर के होने का और उसका मानवजाति के प्रति प्रेम और उसे सँभालने की जिम्मेदारी होने का ।
एक और सबूत है कि इतना अपराध-भ्रष्टाचार होने के बावजूद दुनिया में प्रेम-सहानुभूति-दया-शिक्षा-सर्वधर्मसमभाव के भाव भी बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं, जितना कि आज से पहले कभी नहीं दीखते। धर्म-अध्यात्म में लोगो की रूचि बहुत बढ़ी है और विज्ञानं ने दुनिया को बहुत सुन्दर-विकसित-उपयोगी बना दिया है। भारत में एवं कई राष्ट्रों में बड़े राजनैतिक परिवर्तन हुए हैं, आर्थिक परिवर्तन हुए है । एक तरफ पतन तो दूसरी तरफ ईश्वरीय रास्ते पर बढ़ते लोग यही संकेत करते हैं कि विश्व में कई सकारात्मक परिवर्तन तो होने लगे हैं, जो कि आज भले ही छोटे हों, परन्तु कल उन्हें बड़े बनते भी देर ना लगेगी। ख़ास बात यह है कि सभी परिवर्तन किसी विशेष धर्म-जाती-संप्रदाय तक सिमित और संकीर्ण ना होकर व्यापक हैं और सम्पूर्ण मानवजाति को प्रभावित कररहे हैं । हम यहाँ ईश्वर के नाम को किसी भी धर्म-संप्रदाय के नहीं अपितु सवर्व्यापक परमात्मा के रूप में ले रहे हैं, जो कि एक है, बस अलग-अलग धर्मों में अलग अलग नाम और रूप के साथ जाने जाते हैं ।
इतना ही नहीं, अनेक भविष्यवक्ताओं ने जैसे नास्ट्रेडोमास, ऐनी बीसेंट इत्यादि प्राचीन ग्रन्थ जैसे भागवत, कुरान, बाइबल अनेक महापुरुष जैसे स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द, युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य आदि ने भी एक स्वर में युग परिवर्तन होने की बात कही है, जो कि पूर्ण प्रामाणिक है।
अब टेक्नोलॉजी, परमाणु हथियार और प्रदूषण के इस युग में ईश्वर के छोटे-छोटे स्वरूपों से काम बनने वाला नहीं, इसलियें ईश्वर ने पूर्ण परिवर्तन 'युग परिवर्तन' करने का संकल्प लिया है, नहीं तो दुनिया के नष्ट होने में ज्यादा देर नहीं और मात्र 2-3 जेनेरेशन में ही सब खत्म होने लगेगा।
बदल रहे मौसम के साथ हमें भी बदलने का इतजाम करना पड़ता है, नहीं तो बीमार हुए देर नहीं लगती है। बदल रही टेक्नोलॉजी के साथ हमें भी upgrade होना पड़ता है, नहीं तो हम पिछड़ जाते हैं। उसी प्रकार होरहे युगपरिवर्तन के साथ भी हमें बदलना ही होगा, नहीं तो हम विश्व निर्माण की धारा में पिछड़ जायेंगे, बीमार पड़ जायेंगे, हमारा और हमारे परिवार का जीवन तक संकट में पड़ जायेगा।
कलियुग-सतयुग के बीच का यह युद्ध अब अपने चरम पर पहुँच चला है, इस युग में होने के नाते हम चाहे या ना चाहें, इस धर्म युद्ध के भाग बनने के लियें हम मजबूर हैं। आज हर व्यक्ति और उसके परिवार के सामने दो ही विकल्प बचे हैं: या तो देवत्व का साथ दे, ईश्वर के युग परिवर्तन में भागीदार बने, नहीं तो मजबूरन कलियुग उन्हें अपने कब्जे में लेलेता है और वहां से उनका बेडा गर्क होना शुरू हो जाता है। अब बीच की कोई स्थिति नहीं बची है, जहाँ बैठ कर तमाशा देखने का विकल्प हो, या फिर मेरा क्या? और मुझे क्या मतलब? कहने का मौका हो ।
हमारे घर में हम बीमार रहते हों, सबकुछ होते हुए भी दुःखी-चिंतित-परेशान रहते हों, घर में कलह हो, बच्चे बिगड़ रहे हों, अनेक प्रकार की आर्थिक-शारीरिक-मानसिक-भावनात्मक परेशानियों से घिरे हुए हों तो यकीन मानियें हम ऊपर की पंक्तियों में आप ही के बारे में बात कररहे थे। हुआ यह कि आपने युग परिवर्तन के इस प्रक्रिया में ईश्वर का साझेदार बनने का निर्णय नहीं करपायें और अनिर्णय की स्थिति में रह गए। बस फिर क्या था, ऐसा करते ही आप अपने आप कलियुग के कब्जे में आ गए और तब से आपका और आपके परिवार का पतन शुरू होगया। भले ही आप अनजान थे परन्तु अफ़सोस है कि यह भीषण संकट के समय है आप अपने परिवार सहित कलियुग का शिकार बनगए। भले ही आप कहें मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है, मैं तो शराफत से अपना जीवन जीता हूँ, अपना काम करता हूँ, पूजा-पाठ करता हूँ, फिर मेरे परिवार में बीमारी-संकट-परेशानी क्यों? मित्रों युद्ध के समय यही होता है, युद्ध के समय सामान्य जीवन जीना काफी नहीं होता, अपितु युद्ध से रक्षा हेतु तैयारी करनी अनिवार्य होती है और जरूरत पड़ने पर आक्रमण करने की शक्ति भी रखनी होती है। यह सतयुग-कलियुग के घनघोर संघर्ष का भीषण समय है और ज्यादातर लोगो को यहबात पता ही नहीं है, और जिन्हें पता है, वह अनिर्णय की स्थिति में रहते है और दुःख है कि कलियुग का शिकार बन रहे हैं। यह एक ऐसा मोर्चा है जहाँ आज दुनिया के 90% लोग फेल हो रहे हैं, तभी तो आज घर-घर में मधुमेह, रक्तचाप,हार्ट-अटैक की बिमारी है, छोटे-छोटे बच्चे तक नजर कमजोर, हमोनल इम्बैलेंस और मधुमेह के शिकार हैं। इसके लियें प्रदूषण और मिलावटखोरी को जिम्मेदार बताकर अपना पल्ला झाड़लेने से कोई समाधान होने वाला नहीं। बीमार आप है, आपका बच्चा है, परेशानी में आप हैं, आपका परिवार है; सुधार भी आपको ही करना होगा, जिम्मेदारी आपको ही लेनी होगी नहीं तो पूर्ण विनाश के लियें तैयार रहें।
एक मेरे कुछ करने से इतनी बड़ी समस्या का हल कैसे होगा? एक मेरे बदलने से, जिम्मेदारी उठाने से पूरा समाज, भ्रष्टाचार-प्रदूषण कैसे सुधेरगा? यह प्रथम ज्वलंत प्रश्न है, जो कि हमारे मन में उठता है। तो मित्रो दुनिया में भुखमरी कितनी है, कुपोषण कितना है फिर भी हम जतन करके अपने परिवार को तो भुखमरी से बचते ही हैं ना। अपराध कितना अधिक है, फिर भी हम स्वयं को और अपने परिवार को संकटों से बचने हेतु सभी इंतजाम तो करते हैं ना। उसी प्रकार युग परिवर्तन में आपकी भागीदारी का सवर्प्रथम पुरस्कार आपको यही मिलेगा कि आप और आपका परिवार कलियुग के इस दानवीय प्रभाव से मुक्त हो जायेंगे। ईश्वर की शरण में आते ही, ईश्वरीय शक्ति आपका निश्चित रूप से संरक्षण-पोषण करेगी, आप संकटों से दूर रहेंगें।
बूँद-बूँद से ही सागर भरता है, एक एक करके यदि हम सब सुधर गए, ईश्वरीय संरक्षण में चले गए, तो फिर पूर्ण युग परिवर्तन होने में देर ना लगेगी । यही मन्त्र हैं युगपरिवर्तन का। द्वापर युग में जो युग परिवर्तन हुआ था, उसकी लड़ाई कुरुक्षेत्र में लड़ी गयी थी, और सम्पूर्ण आर्यव्रत (विश्व) उससे प्रभावित हुआ था । इस कलियुग के युगपरिवर्तन में भी सम्पूर्ण विश्व प्रभावित होना है, एवं इसकी लड़ाई कुरुक्षेत्र में नहीं, अपितु आपके-हमारे घर-घर में लड़ी जानी है। जो व्यक्ति-परिवार ईश्वरीय संरक्षण में आकर अपने चिंतन-चरित्र-व्यवहार, गुण-कर्म-स्वाभाव का परिमार्जन करलेंगे, वहां की लड़ाई हम जीत जायेंगे। और जो व्यक्ति अनिर्णय की स्थिति में रह जायेगें, वहां कलियुग अपने पूर्ण प्रभाव के साथ आपको बीमारी-अशांति-कलह-पतन करवा के ही छोड़ेगा।
फैसला आपका है? अपना वर्तमान जीवन जीते हुए ही हमें ईश्वर के इस युग परिवर्तन अभियान में जुड़ जाना है। युग परिवर्तन के इस महान क्रम में हम कैसे जुड़ें इसके लियें पढ़ें अगला लेख "युग निर्माण योजना: भागीदार बनें, लाभ उठायें"
यह बात तो पक्की है कि दुनिया तेजी से बदल रही है| सामाजिक मूल्य, मानवीय परिभाषा, टेक्नोलॉजी का उपयोग, राजनीती, अर्थ शक्ति सब बड़ी तेजी से बदल रहा है, इस बात से आज सभी पढ़े लिखे सहमत हैं । परन्तु युग परिवर्तन और सतयुग की वापसी ना तो समझ में आता है, और ना ही संभव होता दीखता है, क्योकि अपराध, आतंकवाद, प्रदूषण और भ्रष्टाचार बड़ी तेजी से बढ़ता दिख रहा है ।
युग परिवर्तन होने के पीछे एक मात्र यही दलील है कि जितनी तेजी से अपराध, आतंकवाद, प्रदूषण और भ्रष्टाचार बढ़ते दिख रहा है, तो वह दिन दूर नहीं जब पूरी पृथ्वी मनुष्य के रहने लायक नहीं रह जाएगी और समष्ट जीवन नष्ट हो जायेगा, भले ही युद्ध से या प्रदूषण से । और ईश्वर जिन्होंने बड़े यतन से यह सृष्टि बनाई है, इसे इतनी आसानी से नष्ट होने ना देंगे ।
आत्महत्या की तरफ बढ़ते हुए मनुष्य जाति को रोकने और पुनः सात्विक जीवन की ओर मोड़ने के लियें जो परिवर्तन लगता है उसे 'युग परिवर्तन' कहते हैं। जब स्थितियां मनुष्य के हाथों से निकल जाती है, तब उसे सँभालने हेतु स्वयं ईश्वर 'युग परिवर्तन' का काम अपने हाथों में लेते है और इस काम को दुत्र गति से करते हैं। इसके छोटे स्वरुप में हम देख सकते हैं कि विश्व में मानवीयता और धर्म-अध्यात्म को समय-समय पर सँभालने हेतु कोई अवतार, महापुरुष, पैगम्बर, ईश्वर का दूत नियमित रूप से आते रहें हैं। यह सबूत है ईश्वर के होने का और उसका मानवजाति के प्रति प्रेम और उसे सँभालने की जिम्मेदारी होने का ।
एक और सबूत है कि इतना अपराध-भ्रष्टाचार होने के बावजूद दुनिया में प्रेम-सहानुभूति-दया-शिक्षा-सर्वधर्मसमभाव के भाव भी बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं, जितना कि आज से पहले कभी नहीं दीखते। धर्म-अध्यात्म में लोगो की रूचि बहुत बढ़ी है और विज्ञानं ने दुनिया को बहुत सुन्दर-विकसित-उपयोगी बना दिया है। भारत में एवं कई राष्ट्रों में बड़े राजनैतिक परिवर्तन हुए हैं, आर्थिक परिवर्तन हुए है । एक तरफ पतन तो दूसरी तरफ ईश्वरीय रास्ते पर बढ़ते लोग यही संकेत करते हैं कि विश्व में कई सकारात्मक परिवर्तन तो होने लगे हैं, जो कि आज भले ही छोटे हों, परन्तु कल उन्हें बड़े बनते भी देर ना लगेगी। ख़ास बात यह है कि सभी परिवर्तन किसी विशेष धर्म-जाती-संप्रदाय तक सिमित और संकीर्ण ना होकर व्यापक हैं और सम्पूर्ण मानवजाति को प्रभावित कररहे हैं । हम यहाँ ईश्वर के नाम को किसी भी धर्म-संप्रदाय के नहीं अपितु सवर्व्यापक परमात्मा के रूप में ले रहे हैं, जो कि एक है, बस अलग-अलग धर्मों में अलग अलग नाम और रूप के साथ जाने जाते हैं ।
इतना ही नहीं, अनेक भविष्यवक्ताओं ने जैसे नास्ट्रेडोमास, ऐनी बीसेंट इत्यादि प्राचीन ग्रन्थ जैसे भागवत, कुरान, बाइबल अनेक महापुरुष जैसे स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द, युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य आदि ने भी एक स्वर में युग परिवर्तन होने की बात कही है, जो कि पूर्ण प्रामाणिक है।
अब टेक्नोलॉजी, परमाणु हथियार और प्रदूषण के इस युग में ईश्वर के छोटे-छोटे स्वरूपों से काम बनने वाला नहीं, इसलियें ईश्वर ने पूर्ण परिवर्तन 'युग परिवर्तन' करने का संकल्प लिया है, नहीं तो दुनिया के नष्ट होने में ज्यादा देर नहीं और मात्र 2-3 जेनेरेशन में ही सब खत्म होने लगेगा।
बदल रहे मौसम के साथ हमें भी बदलने का इतजाम करना पड़ता है, नहीं तो बीमार हुए देर नहीं लगती है। बदल रही टेक्नोलॉजी के साथ हमें भी upgrade होना पड़ता है, नहीं तो हम पिछड़ जाते हैं। उसी प्रकार होरहे युगपरिवर्तन के साथ भी हमें बदलना ही होगा, नहीं तो हम विश्व निर्माण की धारा में पिछड़ जायेंगे, बीमार पड़ जायेंगे, हमारा और हमारे परिवार का जीवन तक संकट में पड़ जायेगा।
कलियुग-सतयुग के बीच का यह युद्ध अब अपने चरम पर पहुँच चला है, इस युग में होने के नाते हम चाहे या ना चाहें, इस धर्म युद्ध के भाग बनने के लियें हम मजबूर हैं। आज हर व्यक्ति और उसके परिवार के सामने दो ही विकल्प बचे हैं: या तो देवत्व का साथ दे, ईश्वर के युग परिवर्तन में भागीदार बने, नहीं तो मजबूरन कलियुग उन्हें अपने कब्जे में लेलेता है और वहां से उनका बेडा गर्क होना शुरू हो जाता है। अब बीच की कोई स्थिति नहीं बची है, जहाँ बैठ कर तमाशा देखने का विकल्प हो, या फिर मेरा क्या? और मुझे क्या मतलब? कहने का मौका हो ।
हमारे घर में हम बीमार रहते हों, सबकुछ होते हुए भी दुःखी-चिंतित-परेशान रहते हों, घर में कलह हो, बच्चे बिगड़ रहे हों, अनेक प्रकार की आर्थिक-शारीरिक-मानसिक-भावनात्मक परेशानियों से घिरे हुए हों तो यकीन मानियें हम ऊपर की पंक्तियों में आप ही के बारे में बात कररहे थे। हुआ यह कि आपने युग परिवर्तन के इस प्रक्रिया में ईश्वर का साझेदार बनने का निर्णय नहीं करपायें और अनिर्णय की स्थिति में रह गए। बस फिर क्या था, ऐसा करते ही आप अपने आप कलियुग के कब्जे में आ गए और तब से आपका और आपके परिवार का पतन शुरू होगया। भले ही आप अनजान थे परन्तु अफ़सोस है कि यह भीषण संकट के समय है आप अपने परिवार सहित कलियुग का शिकार बनगए। भले ही आप कहें मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है, मैं तो शराफत से अपना जीवन जीता हूँ, अपना काम करता हूँ, पूजा-पाठ करता हूँ, फिर मेरे परिवार में बीमारी-संकट-परेशानी क्यों? मित्रों युद्ध के समय यही होता है, युद्ध के समय सामान्य जीवन जीना काफी नहीं होता, अपितु युद्ध से रक्षा हेतु तैयारी करनी अनिवार्य होती है और जरूरत पड़ने पर आक्रमण करने की शक्ति भी रखनी होती है। यह सतयुग-कलियुग के घनघोर संघर्ष का भीषण समय है और ज्यादातर लोगो को यहबात पता ही नहीं है, और जिन्हें पता है, वह अनिर्णय की स्थिति में रहते है और दुःख है कि कलियुग का शिकार बन रहे हैं। यह एक ऐसा मोर्चा है जहाँ आज दुनिया के 90% लोग फेल हो रहे हैं, तभी तो आज घर-घर में मधुमेह, रक्तचाप,हार्ट-अटैक की बिमारी है, छोटे-छोटे बच्चे तक नजर कमजोर, हमोनल इम्बैलेंस और मधुमेह के शिकार हैं। इसके लियें प्रदूषण और मिलावटखोरी को जिम्मेदार बताकर अपना पल्ला झाड़लेने से कोई समाधान होने वाला नहीं। बीमार आप है, आपका बच्चा है, परेशानी में आप हैं, आपका परिवार है; सुधार भी आपको ही करना होगा, जिम्मेदारी आपको ही लेनी होगी नहीं तो पूर्ण विनाश के लियें तैयार रहें।
एक मेरे कुछ करने से इतनी बड़ी समस्या का हल कैसे होगा? एक मेरे बदलने से, जिम्मेदारी उठाने से पूरा समाज, भ्रष्टाचार-प्रदूषण कैसे सुधेरगा? यह प्रथम ज्वलंत प्रश्न है, जो कि हमारे मन में उठता है। तो मित्रो दुनिया में भुखमरी कितनी है, कुपोषण कितना है फिर भी हम जतन करके अपने परिवार को तो भुखमरी से बचते ही हैं ना। अपराध कितना अधिक है, फिर भी हम स्वयं को और अपने परिवार को संकटों से बचने हेतु सभी इंतजाम तो करते हैं ना। उसी प्रकार युग परिवर्तन में आपकी भागीदारी का सवर्प्रथम पुरस्कार आपको यही मिलेगा कि आप और आपका परिवार कलियुग के इस दानवीय प्रभाव से मुक्त हो जायेंगे। ईश्वर की शरण में आते ही, ईश्वरीय शक्ति आपका निश्चित रूप से संरक्षण-पोषण करेगी, आप संकटों से दूर रहेंगें।
बूँद-बूँद से ही सागर भरता है, एक एक करके यदि हम सब सुधर गए, ईश्वरीय संरक्षण में चले गए, तो फिर पूर्ण युग परिवर्तन होने में देर ना लगेगी । यही मन्त्र हैं युगपरिवर्तन का। द्वापर युग में जो युग परिवर्तन हुआ था, उसकी लड़ाई कुरुक्षेत्र में लड़ी गयी थी, और सम्पूर्ण आर्यव्रत (विश्व) उससे प्रभावित हुआ था । इस कलियुग के युगपरिवर्तन में भी सम्पूर्ण विश्व प्रभावित होना है, एवं इसकी लड़ाई कुरुक्षेत्र में नहीं, अपितु आपके-हमारे घर-घर में लड़ी जानी है। जो व्यक्ति-परिवार ईश्वरीय संरक्षण में आकर अपने चिंतन-चरित्र-व्यवहार, गुण-कर्म-स्वाभाव का परिमार्जन करलेंगे, वहां की लड़ाई हम जीत जायेंगे। और जो व्यक्ति अनिर्णय की स्थिति में रह जायेगें, वहां कलियुग अपने पूर्ण प्रभाव के साथ आपको बीमारी-अशांति-कलह-पतन करवा के ही छोड़ेगा।
फैसला आपका है? अपना वर्तमान जीवन जीते हुए ही हमें ईश्वर के इस युग परिवर्तन अभियान में जुड़ जाना है। युग परिवर्तन के इस महान क्रम में हम कैसे जुड़ें इसके लियें पढ़ें अगला लेख "युग निर्माण योजना: भागीदार बनें, लाभ उठायें"
( यहाँ हम किसी भी प्रकार के धर्म परिवर्तन की बात नहीं कर रहें, धर्म-संप्रदाय मनुष्यों ने अपनी सुविधा के लियें बनाये हैं, ईश्वर को इससे कुछ मतलब नहीं है |)
॥ सर्वे भवन्तुः सुखिनः ॥
॥ ॐ शांतिः शांतिः ॥
॥ ॐ शांतिः शांतिः ॥
Very well articulated Ankur. Outstanding. This article must be shared as much as possible. It is high time when we should expand the horizon of our thought process and participate in YugParivartan with all will and skill. After all it is a collective cause and hence must be tackled by involvement of all people. The danger is real and it is very near, yet several people are succumbing to bhog-vilas and keeping their eyes closed.
ReplyDelete- Author of the revolutionary book "Code of Citizen's Conduct (Rashtradharma)"
રાશી સિંહ
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