ईतर योनि सिद्ध करके सिद्धि/शक्ति प्राप्त करने कि आकांशा रखने वाले सभी बंधुगण:
ब्राह्मांड नियमानुसार शक्ति प्राप्त करने का अधिकारी केवल वही होते हैं, जो उसे धारण करने कि पात्रता सिद्ध करके दिखा दें । ईश्वर ने स्वाभाविक रूप से सभी मनुष्यों को शक्ति प्रदान की है ; बुद्धि, चरित्र, समय, जवानी, धन, विचार इत्यादि ईश्वर कि दी हुई स्वाभाविक शक्तियाँ हैं हम सबके पास । पात्रता कि कसौटी परखते हुए ईश्वर चाहता है कि सर्वप्रथम हम इन शक्तियों का सदुपयोग कर के दिखाएँ । पात्रता सिद्ध होते ही हम अन्य उच्च स्तरीय शक्तियों कि साधना करके उन्हें धारण करने योग्य हो सकते हैं ।
यदि हम महान सिद्धों के इतिहास पर नज़र डालें तो देखेंगे किस प्रकार उन्होंने अपने विचार, समय, ओज-तेज को संयमित करके स्वाभाविक शक्तियों का सदुपयोग किया । तदपश्चात वह साधना मार्ग पर आगे बढ़ते हुए दिव्य शक्तियों को सिद्ध करके उनका लोक कल्याण के लिए सदुपयोग करते थे । प्रश्न यह है कि हम अपने समय, प्रतिभा, धन, बुद्धि, साधन, श्रम का कितना सदुपयोग करते हैं ?
राष्ट्र सेवा, औरों कि रक्षा के लियें शक्ति से पहले भावना कि जरूरत होती है । जिन में भावना उच्चस्तरीय हो, वह शक्ति होने या न होने कि परवाह नहीं करते । जो है, जितना है उतना पूरा शतप्रतिशत सेवा में लगा देते हैं। न भगत सिंह कि पास सिद्धि थी न सुभाष चन्द्र बोस के पास, सिर्फ अपनी उच्चस्तरीय भावना अनुसार उन्होंने अपना सबकुछ राष्ट्र सेवा में अर्पित कर दिया । और उच्चस्तरीय भावना के लियें कोई इतर योनि कि सिद्धि नहीं सिर्फ साफ दिल एवं दृढ़ निश्चय होना काफ़ी है । यह श्रेष्ठ भावना जब जाग्रत होती है तब सद्गुरुदेव विशेष उद्देश्य के लियें दिव्य शक्तियाँ भी प्रदान करते हैं । नरेंद्र ने जब राष्ट्र के उद्धार के लियें अपना दृढ़ संकल्प दिखाया तब ठाकुर ने उनकी उच्च संस्कार देखते हुए शक्तिपात कर स्वामी विवेकानंद बना दिया , और राष्ट्र सेवा का महान कार्य करवाया ।