Monday, June 15, 2015

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योग, a holistic way to get maximum of Human Potential

स्वास्थ्य, सफलता, समृद्धि, सुख, आनंद, शांति, प्रेम, सम्मान, यही चाहत होती है हम सबकी और यह पाना हर मनुष्य का अधिकार भी है। पर ऐसा होता नहीं । आधुनिक युग की इस भागदौड़ में हम अकसर पिछड़ जाते हैं । Carrier, Health, Relationship, Happiness सब एक साथ नहीं कमा पाते। तो क्या ऐसा होना असंभव है या सम्भव। प्राचीन आध्यात्म विज्ञानं ने हमें "योग" के रूप में वह सशक्त जीवनशैली दी है जिससे यह होना संभव है।
     शरीर, मन, बुद्धि, प्रतिभा, पराक्रम, व्यवहार, गुण, चरित्र  के रूप में हमारे पास वह ईश्वर प्रदत शक्तियां हैं जिससे हम अपने जीवन में चहुँओर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु विकारों के कारण हम अपनी इन शक्तियों का पूर्ण उपयोग (Maximum Utilization) नहीं कर पाते। कभी हमारा मन भागता रहता हैं, कभी व्यवहार ख़राब होता है, कभी शरीर स्वस्थ्य नहीं रहता तो कभी इतनी प्रतिभा नहीं होती कि बड़ा काम नौकरी, व्यापार कर सकें। और हम जीवन भर मनमसोस कर रह जाते हैं ।
     योग हमें वह रास्ता बताता हैं जिससे हम  शरीर, मन, बुद्धि, प्रतिभा, पराक्रम, व्यवहार, गुण, चरित्र रुपी शक्तियों को बढ़ा सकते हैं,  इनका पूर्ण उपयोग कर सकते हैं। बीमार स्वस्थ्य हो सकता है, बुद्धू प्रतिभाशाली बन सकता है, चंचल मन एकाग्र बन सकता है, डरपोक पराक्रमी बन सकता है, व्यवहार कुशल बन सकता है।  फिर हम जीवन के सभी दिशाओं में Carrier, Health, Relationship, Happiness या कुछ भी अपनी मन चाही सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
     योग आधारित जीवन हमें स्वस्थ्य-सफल जीवन का आधार देता है। समाज में फैले भ्रष्टाचार, अपराध, अनैतिकता का भी यह पूर्ण उपचार है।  क्रमशः

Wednesday, June 3, 2015

lok seva

लोक सेवियों के लियें दिशा बोध

दीन दुखियों की सेवा करना, उनके कष्टो का निवारण करना मनुष्य का कर्तव्य है। सेवा करने लियें जिस एक मात्र शक्ति की आवश्यकता होती है वह है 'मानवीय संवेदना'। जिसके मन में दूसरों के प्रति करुणा दया ममता का भाव है, वह अपनी वर्तमान शक्ति, साधन, समय  पीड़ित मानवता की सेवा में लगा देता है। ऐसे धन्य सत्पुरुषों को हम महामानव के नाम से जानते है।
     अधिक साधन,शक्ति से अधिक सेवा करने का रास्ता ऐसे महापुरुष नहीं अपनाते , क्योकि ऐसा करते ही वे सेवा के मार्ग से भटक कर अधिक शक्ति,साधन इक्क्ठा करने के स्वार्थ भरे मार्ग पर आ जाते है। और फिर स्वार्थ का यह दानव उन्हें सूक्ष्म लोभ-मोह-अहंकार का ऐसा विष देता है कि अनजाने में ही वे सेवा पथ से भटक कर स्वार्थ पथ पर पहुंच जाते है और अपने जीवन की महान संभावनाओं को स्वयं नष्ट कर डालते हैं ।
     ईश्वर ईमानदारी देखता है। जहाँ उसे संवेदनशील ईमानदार हृदय दीखता है, वहाँ वह अपने आशीर्वादों की झड़ी लगा देता है। लौह पुरुष जब भूदान के साहसिक निस्वार्थ अभियान पर निकले तो अमीर-गरीब ने दान की बौछार कर दी । विवेकानंद जब भारत की निस्वार्थ सेवा के उद्देश्य से अमरीका गए तो ठाकुर ने दिव्य शक्तियों की झड़ी लगा दी । शिवजी जब मुगलों से लोहा लेने निकले तो गुरु रामदास जी ने आशीर्वाद शक्ति की बरसात कर दी।
     अतः लोकसेवा के पथिकों को चाहियें कि वह सतत आत्म निरिक्षण करते रहें, कुछ पाने की नहीं सिर्फ और सिर्फ देने की महत्वकांक्षा रखें । याद रखें की यदि हम दो हांथों से बांटेंगे तो ईश्वर हज़ार हाथों से हमें देगा ।