GEMS of Thought Management:
साथ ही अपने आपको किसी कार्य में पूर्णतः नियोजित करलें, इसतरह कि आपके पास ज्यादा सोचने-विचारनें-चिंता करने का टाइम ही ना रहे ।
इससे होता यह है कि जो व्यर्थ की बातें हैं, वो IGNORE होने के बाद स्वतः खत्म हो जाती हैं, और जो सही परेशानियाँ होती हैं और आप उन्हें सुलझा नहीं पा रहे हों, उनको कुछ वक्त मिल जाता है, और वक्त हर ज़ख्म की दवा है, सही वक्त आने पर आपकी परेशानिय का हल आपको अवश्य मिलजायेगा ।
अपने जीवन में "उपासना-स्वाध्याय-संयम-सेवा" को अभिन्न अंग बना लें ।
चिंता और परेशानी किसी काम के अधूरे रहने से नहीं आती , हमारे मनोविकारों, कर्म-संस्कारों के कारण हमें चिंता/परेशानी/तनाव होता है, कार्य तो सिर्फ माध्यम बन जाते हैं चिंता के प्रकट होने का ।
"उपासना-स्वाध्याय-संयम-सेवा" के नियमित-निरंतर अभ्यास हमारे मनोविकारों, कर्म-संस्कारों स्वतः दूर होने लगते हैं । ऐसे में तनाव-चिंता बनती ही नहीं ।
जीवन को "संघर्ष का नाम जिंदगी", "काम करते रहने का नाम जिंदगी", "हर काम में सफलता मिलनी ही चाहियें" के भाव से नहीं अपितु "खेल भावना से जीना चाहियें", "हँसते-हँसाते, खेलते-खिलाते, जीतते-हारते" हुए जीवन जीना सहज और सरल है ।
यदि हम मानसिक-भावनात्मक इच्छाओं, परेशानियों, दुविधाओं से घिरें हों, और लाख चाह कर भी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा हो तो क्या करें ?
अपने मन-मस्तिष्क से समस्या/इच्छा को निकाल दें, उनके प्रति जो मोह, आसक्ति हो गयी है, उस आसक्ति/मोह के प्रति वैराग्य अपना लें, simply just IGNORE them Totally.साथ ही अपने आपको किसी कार्य में पूर्णतः नियोजित करलें, इसतरह कि आपके पास ज्यादा सोचने-विचारनें-चिंता करने का टाइम ही ना रहे ।
इससे होता यह है कि जो व्यर्थ की बातें हैं, वो IGNORE होने के बाद स्वतः खत्म हो जाती हैं, और जो सही परेशानियाँ होती हैं और आप उन्हें सुलझा नहीं पा रहे हों, उनको कुछ वक्त मिल जाता है, और वक्त हर ज़ख्म की दवा है, सही वक्त आने पर आपकी परेशानिय का हल आपको अवश्य मिलजायेगा ।
अपने जीवन में "उपासना-स्वाध्याय-संयम-सेवा" को अभिन्न अंग बना लें ।
चिंता और परेशानी किसी काम के अधूरे रहने से नहीं आती , हमारे मनोविकारों, कर्म-संस्कारों के कारण हमें चिंता/परेशानी/तनाव होता है, कार्य तो सिर्फ माध्यम बन जाते हैं चिंता के प्रकट होने का ।
"उपासना-स्वाध्याय-संयम-सेवा" के नियमित-निरंतर अभ्यास हमारे मनोविकारों, कर्म-संस्कारों स्वतः दूर होने लगते हैं । ऐसे में तनाव-चिंता बनती ही नहीं ।
जीवन को "संघर्ष का नाम जिंदगी", "काम करते रहने का नाम जिंदगी", "हर काम में सफलता मिलनी ही चाहियें" के भाव से नहीं अपितु "खेल भावना से जीना चाहियें", "हँसते-हँसाते, खेलते-खिलाते, जीतते-हारते" हुए जीवन जीना सहज और सरल है ।