Thursday, July 17, 2014

Anmol Vachan

☀ सीधी-साधी बातें, जो जीवन बदल दे ☀

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हम जितना परेशान होते हैं या जितना चिंतित होते हैं, हमारे अंदर उतनी ज़्यादा नकारात्मक उर्जा बढ़ती जाती है, जो अंततः  समस्या को और बढ़ाती ही है | अतः मुश्किल समय में प्रसन्न रहना एवं सकारात्मक रहना सबसे उत्तम उपचार है किसी भी समस्या का | क्योकि इससे आप के अंदर सकारात्मक उर्जा बढ़ती है, जिससे समस्या अपना फन फैला ही नहीं पाती और आप को विजय दिलाती है |

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दृष्टिकोण जीवन मे सुख-संतोष लाता है | 

सवाल यह है कि हम किस दृष्टिकोण के साथ जी रहे हैं ?
    मैं सीनियर मैनेजर हूँ अपने ऑफीस में, और मैं इसी दृष्टिकोण के साथ जीता हूँ | घर में भी मैं मैनेजर ही बना रहता हूँ | दोस्तो के साथ भी मैं सीनियर मैनेजर की तरह मिलता हूँ | कोई सहकर्मी भी यदि कहीं बाहर मिल जाएँ तो वहाँ भी मैं मैनेजर ही रहता हूँ | भावनाएँ ताक पर और अपना अहंकार-बद्द्पन सर्वोच्च | सीमित दृष्टिकोण वाला यह जीवन सफलता भले ही ले आएँ, परंतु सुख-संतोष कभी नही ला सकता | अमीरों-सफल व्यक्तियों के दुख भरे जीवन का यह प्रधान कारण है | 
    मैं सीनियर मैनेजर हूँ केवल अपने काम करते समय | घर मे मैं एक पति, पिता, पुत्र, भाई हूँ | दोस्तों मे मैं एक मिलनसार दोस्त हूँ | सामाजिक जीवन में मैं एक ज़िम्मेदार और इज्ज़द्दार व्यक्ति हूँ | स्वयं का भी मैं दोस्त हूँ और अपने स्वास्थ्य, शौक के लिए भी मैं समय निकलता हूँ |  मेरा दृष्टिकोण सीमित नही हैं क्योकि कॅरियर ही मेरा संपूर्ण जीवन नहीं | परिवार, मित्र, समाज, कॅरियर, स्वयं  यह सब मिल कर मेरा जीवन बनाते हैं, और मेरा दृष्टिकोण मे इन सब के लिए स्थान है | आज भले ही मैं बहुत ज़्यादा सफल नहीं, परंतु पूर्ण सुखी, पूर्ण संतुष्ट हूँ |

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Tuesday, July 15, 2014

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बूढ़े बाज की उड़ान

बाज लगभग ७० वर्ष जीता है, पर अपने जीवन के ४०वें वर्ष में आते आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं। पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है और शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं। चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है। पंख भारी हो जाते हैं और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते हैं। भोजन ढूढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना, तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं। उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं, या तो देह त्याग दे, या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे, या स्वयं को पुनर्स्थापित करे, आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में।

मन अनन्त, जीवन पर्यन्त
जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, तीसरा अत्यन्त पीड़ादायी और लम्बा। बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है। वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, अपना घोंसला बनाता है, एकान्त में और तब प्रारम्भ करता है पूरी प्रक्रिया। सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है, अपनी चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं पक्षीराज के लिये। तब वह प्रतीक्षा करता है चोंच के पुनः उग आने की। उसके बाद वह अपने पंजे उसी प्रकार तोड़ देता है और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने की। नये चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता पंखों के पुनः उग आने की।

१५० दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा और तब कहीं जाकर उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान, पहले जैसी नयी। इस पुनर्स्थापना के बाद वह ३० साल और जीता है, ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।

प्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।

अपनी हों उन्मुक्त उड़ानें पंजे पकड़ के प्रतीक हैं, चोंच सक्रियता की द्योतक है और पंख कल्पना को स्थापित करते हैं। इच्छा परिस्थितियों पर नियन्त्रण बनाये रखने की, सक्रियता स्वयं के अस्तित्व की गरिमा बनाये रखने की, कल्पना जीवन में कुछ नयापन बनाये रखने की। इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों के तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं, हममें भी, चालीस तक आते आते। हमारा व्यक्तित्व ही ढीला पड़ने लगता है, अर्धजीवन में ही जीवन समाप्तप्राय लगने लगता है, उत्साह, आकांक्षा, ऊर्जा अधोगामी हो जाते हैं।

हमारे पास भी कई विकल्प होते हैं, कुछ सरल और त्वरित, कुछ पीड़ादायी। हमें भी अपने जीवन के विवशता भरे अतिलचीलेपन को त्याग कर नियन्त्रण दिखाना होगा, बाज के पंजों की तरह। हमें भी आलस्य उत्पन्न करने वाली वक्र मानसिकता को त्याग कर ऊर्जस्वित सक्रियता दिखानी होगी, बाज की चोंच की तरह। हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी, बाज के पंखों की तरह।

१५० दिन सही, तो एक माह ही बिताया जाये, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही, बाज की तरह।

बूढ़े बाज तब उड़ानें भरने को तैयार होंगे, इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी।

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अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके......


(
भगवान ... हमें इन दिशा निर्देशों का पालन करने की क्षमता भावना दे)

1.
उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो
2.
वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो
3.
उनकी राय स्वीकारें
4.
उनकी बातचीत में सम्मिलित हों
5.
उन्हें सम्मान के साथ देखें
6.
हमेशा उनकी प्रशंसा करें
7.
उनको अच्छा समाचार जरूर बताये
8.
उनके साथ बुरा समाचार साझां करने से बचें
9.
उनके दोस्तों और प्रियजनों से अच्छी तरह से बोलें
10.
उनके द्वारा किये गए अच्छे काम सदैव याद रखें
11.
वे यदि एक ही कहानी दोहरायें तो भी ऐसे सुनें जैसे पहली बार सुन रहे हो
12.
अतीत की दर्दनाक यादों को मत दोहरायें
13.
उनकी उपस्थिति में कानाफूसी करें
14.
उनके साथ तमीज से बैठे
15.
उनके विचारों को तो घटिया बताये ही उनकी आलोचना करें
16.
उनकी बात काटने से बचें
17.
उनकी उम्र का सम्मान करें
18.
उनके आसपास उनके पोते/पोतियों को अनुशासित करने अथवा मारने से बचें
19.
उनकी सलाह और निर्देश स्वीकारें
20.
उनका नेतृत्व स्वीकार करें
21.
उनके साथ ऊँची आवाज में बात करें
22.
उनके आगे अथवा सामने से चलें
23.
उनसे पहले खाने से बचें
24.
उन्हें घूरें नहीं
25.
उन्हें तब भी गौरवान्वित प्रतीत करायें जब कि वे अपने को इसके लायक समझें
26.
उनके सामने अपने पैर करके या उनकी ओर अपनी पीठ कर के बैठने से बचें
27.
तो उनकी बुराई करें और ही किसी अन्य द्वारा की गई उनकी बुराई का वर्णन करें
28.
उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें
29.
उनकी उपस्थिति में ऊबने या अपनी थकान का प्रदर्शन करें
30.
उनकी गलतियों अथवा अनभिज्ञता पर हँसने से बचें
31.
कहने से पहले उनके काम करें
32.
नियमित रूप से
उनके पास जायें
33.
उनके साथ वार्तालाप में अपने शब्दों को ध्यान से चुनें
34.
उन्हें उसी सम्बोधन से सम्मानित करें जो वे पसन्द करते हैं
35.
अपने किसी भी विषय की अपेक्षा उन्हें  प्राथमिकता दें

माता - पिता इस दुनिया में सबसे बड़ा खजाना हैं....