Friday, May 2, 2014

गुरु मे कैसे हो समाहित


शिष्य का एक ही लक्ष्य होता है, पूर्ण रूप से गुरु मे विलीन हो जाना | अपना संपूर्ण अस्तित्व को समाप्त कर पूर्ण गुरुरूपेण हो जाना | इस सत्य को वही समझ सकते हैं, जिन्होने गुरु भक्ति एवं गुरु तत्व को जीवन मे अपनाया है | शेष वे लोग जो साधना को मात्र चमत्कार दिखाने वाली सिद्धि प्राप्त करने का माध्यम  मानते है, यह सत्य उनके समझ नही आएगा |
 एक गुरु भक्त को चाहिए कि वे बार-बार गुरु से मिले, चाहे काम हो या ना हो | वे गुरु से दीक्षा ले और सतत साधना करता हुआ अनेक बार दीक्षा ले | दीक्षा/शक्तिपात द्वारा गुरुदेव शिष्य के कर्म काट कर उसके चित्त को  स्वच्छ-उज्जवल   बनाते है | साधना के पथ पर आगे  बढ़ाते हैं |
शिष्य को चाहिए कि वो गुरु मंत्र का रोज जाप करे, नियमित-निरंतर-निर्बाध रूप से गुरु मंत्र का जाप करे | गुरु मंत्र से शिष्य का जीवन तर जाता है | अंतःकरण का परिष्कार होता है, कर्म बंधन शिथिल होते है, चक्रों मे उर्जा आती है, कुण्डलिनी जागरण होता है | गुरु मंत्र का महात्म लिखना इस कागज कलम  के बस की बात नही |
        कई गुरु भाइयों ने गुरुमंत्र जप द्वारा साक्षात सद्गुरुदेव परम हंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ] के दर्शन किए है | किसी ख़ास विधि की जरूरत नही, ज़रूरत है बस श्रद्धा-समर्पण-विश्वास की नियमितता-निरंतरता की |
        शिष्य को चाहिए  कि वे गुरु-सेवा करे | यदि साक्षात गुरु से मिलना संभव ना हो तो गुरु का कार्य ही गुरु की सच्ची सेवा होती है | शिष्य पूरे  तन-मन-धन से गुरु का कार्य करे | गुरु कार्य में अपना समय-धन-श्रम-साधन-परिवार को होम कर दे | गुरु के संतोष मात्र से शिष्य के करोड़ो जन्मो के व्रत-अनुष्ठान सफल हो जाते हैं |
       शिष्य को बीज बनाना चाहिए | एक बीज मे पूर्ण वृक्ष होने की क्षमता होती हैं, परन्तु  वह कुछ प्राप्त नही करना चाहता | एक बीज तो सिर्फ़ गलना जानता  है, अपने आप को मिट्टी मे मिला देना और समाप्त करदेना ही बीज का उद्देश्य होता है और वो कर भी देता है | फिर ईश्वर खाद-पानी की दिव्य वर्षा कर उस मिट चुके बीज को वृक्ष होने का वरदान देते है | कल का छोटा सा बीज आज पूर्ण वृक्ष बन जाता है , छाँव देता है, फल देता है, और अपने जैसे अनेक नये बीज पैदा कर देता है|
       शिष्य को भी बीज रूप मे गलना-ढ़लना  चाहिएकाम-क्रोध-मद-लोभ-दंभ-दुर्भाव-अहंकार को समाप्त करते हुए अपने अस्तित्व को गुरु चरणों  मे न्यौछावर कर दें | जैसे ही हमारा समर्पण पूर्ण होता है, गुरु कृपा की अमृत वर्षा होती है और वो शिष्य को पूर्ण वृक्ष मे बदल देती है | शिष्य को पूर्णता का वरदान मिलता है और वो निखिलमय हो जाता है |
        शिष्य को चाहिए कि  वो नदी की तरह बहना सीखे | एक नदी तब-तक बहती रहती है जब तक वो समुद्र से मिल नही जाती | रास्ते मे आने वाली हर बाधा को पार करती हुई नदी समुद्र  मे मिल कर शांत हो जाती है |
       शिष्य को  भी नदी कि की भांति सदैव साधना पुरुषार्थ मे लगे रहना चाहिए जब तक वह परमात्मा मे पूर्ण रूप से समाहित नही हो जाता | रास्ते में  आने वाली हर बाधा घर-परिवार-रिश्तेदार-आंतरिक दुर्बलता-बाहरी विपत्ति को पार करता हुआ वीर भाव से सतत साधनात्मक पुरुषार्थ करता हुआ जीवन भर चलता रहे | ना रुके ना थके तो वो भी एक ना एक दिन समुद्र मे अवश्य समाहित हो जाएगा |
 एक शिष्य को सदैव इन  5  बातों का ध्यान रखना चाहिए :
1) अहंकार की समाप्ति
2) आसक्ति की  समाप्ति
3) मोह की  समाप्ति 
4) अपस्मा-चोरी करने की प्रवृति की समाप्ति
5) गुरु भक्ति मे कभी किसी परिस्थिति में  भी न्यूनता ना आने देना


  रोज रात मे सोने से पहले अपना  आत्म  निरीक्षण कर देखना चाहिए कि आज मैने अहंकार,आसक्ति,मोह,अपस्मा,भक्ति मे कुछ  गड़बड़ तो  नही करी | ग़लतियों  के  लिए गुरुदेव से क्षमा माँगते हुए फिर ना करके का संकल्प लेना चाहियें | इस प्रकार साधक-शिष्य-गुरुमय होता हुआ अपने लक्ष को अवश्य  ही पा लेता है |