Tuesday, January 29, 2013

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ||
'मुझे कुछ पाना हैं या मुझे कुछ करना हैं' में आसक्ति हैं, महत्वाकांक्षा हैं, वासना हैं, अहंकार हैं । तो फिर इस में ईश्वर आशीर्वाद नहीं हो सकता । तो बिना ईश्वर कृपा के 'कुछ पाना/करना'  मुश्किल हैं । तभी हमारे अनेक 'कुछ पाने/करने' की कामनाएं अधूरी रह जाती हैं ।

'मुझे कुछ बनना हैं' में समर्पण हैं,  आत्मविकास का चरण हैं, 'कुछ बनने' का त्याग हैं । यहाँ ईश्वर आशीर्वाद की पूरी सम्भावना हैं। भौतिक रूप में बनना हो या अध्यात्मिक रूप में बनना हो, यदि पुरुषार्थ प्रबल हैं तो ईश्वर आशीर्वाद पक्का हैं, क्योकि यह आत्मविकास का एक प्रकार हैं । सफलता सुनिश्चित हैं ।


विचार-पुरुष युग-ऋषि ने भी यही कहाँ हैं ' यह मत पूछो क्या करें, यह पूछो क्या बने'